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________________ १६ जैनधर्मपर व्याख्यान. है जिसमें महावीर पैदा हुये थे। ऊपर लिखेहुये जैनग्रंथ और अन्यग्रंथों में ज्ञातका वर्णन आया है । महावीरको वैशालिक अर्थात् वैशालीनिवासी देह अर्थात् विदेहका राजकुमार और कश्यप अर्थात् इसगोत्रवाला भी कहा है परन्तु जैनशास्त्रों में अक्सर ज्ञातपुत्रके नामसे कथन किया है । बौद्धग्रंथोंमें उनको नातपुत्त कहा है अर्थात् प्राकृत नात संकृत ज्ञात और प्राकृत पुत्त=संस्कृत पुत्र । बौद्धग्रंथों में ज्ञातको नादिका वा नातिका भी लिखा हैं जननिथ वा प्राकृतनियों का भी बहुधा बौद्धग्रंथोंमें कथन किया हैं और उनको निगंथ नातपुत्त अर्थात् महावीरका अनुयायी कहा है. बौद्धग्रंथों में हमार मतकी कई बड़ी बांका भी कथन आया है जैसे दिग्वत. साधुओंका ठंढें जलको काम में नहीं लाना कर्मका विषय और क्रियावादी इत्यादिका उसूल । उनपुस्तकों में ऐसा लिखा है कि इन सब बातों वर्णन नातवृत्त ( जिसको हम महावीर कहते हैं ) वा निग्रंथ हमारे गुरुओं किया है कई स्थानोंमें शब्द स्त्रावक वा श्रावक भी गृहस्थ जैनी ' के अर्थ में आया हैं ॥ t यह आश्चर्यकारी तहकीकात बुल्हर | Biblers और जैकोबी (Jacobi साहन की है | मैंनें स्वयं 'पूर्वके पवित्रग्रंथों' Sured Books of the East ) नामक पुस्तक महावग्ग और महा परिनिव्वानमत्त पंड है और उन वाक्यों का तर्जुमा मी देखा है जिनमें हमारे ज्ञातपुत्र या निग्रंथ अथवा उनका मत वा शब्द श्रावक आये हैं। जैकोबी (Jacobi) साहबने पूर्वकी पवित्र पुस्तकोंका ४५ वें जिल्दमें' (Sacred Books of the East Vol XLV ) उनका कथन किया है। महावग्ग और महापरि निव्वानसूत्तके सिवाय और बौद्धग्रंथ जिनसे यह वाक्य लिये गये हैं अनुगुतरनिकाय दिघनिकायका सामान्नफलमुत्त, सुमंगलविलासिनी, दिवनिकाय के ब्रह्मगाल सूत्र पर वृद्धगोपकी टिप्पणी और माधिमनिकाय भी है । आरियंटल ( Oriental ) पत्र ललितविस्तरग्रंथका भी नाम बतलाता है ये सत्रग्रंथ ईसाकं जन्म से पहले रचेगये थे । मैक्समूलर (Max miiller ) साहबने दो पुस्तकें बनाई हैं जिनका नाम पड़दर्शन और स्वाभाविक धर्म ( Six systems of Philosophy & Natural Religion ) हैं और ओल्डनवर्ग ( Oldenberg ) ने जो भजीबपुस्तक बनाई हैं उसकानाम 'दि बुद्ध ( The Buddha) हैं. इन पुस्तकों में लिखा है कि नातपुत्त और महावीरंग जो बुद्धके समयमें हुये और जो छह तीर्थंक उपेंदशकों में से एक थे कुछ भेद नहीं है परन्तु उनमें यह म लिखा है कि नातपुत्त जैन अथवा निर्ग्रथमतका चलानेवाला था जो किसीप्रकार नहीं हो सकता परंतु मैं क्यों उनका प्रमाण दूं ? महावग्ग और महापरिनिव्वानसूत्त और अन्यवाक्यों के तर्जुमेमें जा जैकोबी (Jacahi ) ने बुद्धमतकी किताबोंसे किये हैं
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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