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JAINISM IN SOUTH INDIA
rai veqai या यो हरेति वसुंधरां । षष्टिवर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते कृमिः ॥ [१०] स्वस्ति [1] समस्तप्रशस्तिसहितं श्रीमतु सबिलेडियु बिट्ट केह मत्त स्वतळदर तोटाई बढ
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हिन्दी सारानुवाद - जिनेन्द्रशासन भव्यजनोंका कल्याण करें। राष्ट्रकूटोंको नष्ट कर चालुक्य साम्राज्य स्थापित करनेवाले तैलप द्वितीयसे लेकर भूलोकमल्ल अर्थात् सोमेश्वर तृतीय तककी वंशावली | श्रीमद् भूलोकमल्ल (सोमेश्वर तृतीय ) का विजयराज्य प्रवर्धमान था। पहले जो कालिदास नामका दण्डाधीश था, कालिदासका जामाता भीम उसका चमूपति था । सेडिम्ब के विप्रोंकी (चतुर्थ शिलालेख के समान ) प्रशंसा तथा तीन सौ महाजनोंकी (तृतीय शिलालेख के समान) प्रशंसा । चालुक्यचक्रवर्ती भूलोकमल्लके राज्य संवत् १२ व पिङ्गल संवत्सर माघशुक्ल बृहस्पतिवार के दिन, महाप्रधान प्रधानदण्डनायक कालिमय्यके जामाता प्रचण्डदण्डनायक भोमरसकी प्रमुखता सभी महाजनोंने भग० आदिभट्टारक ( आदिनाथ ) की नित्य नैमित्तिक पूजाके लिए, तथा मन्दिरकी मरम्मतके लिए सैडिम्ब ग्रामकी दक्षिण दिशामें ४५ मत्त प्रमाण कृष्य भूमि और १ बगीचा दानमें दिया । तथा उसी दिन उक्त महाजनोंकी प्रमुखतामें उभय नाना देशीय (एक प्रकारके व्यापारी जो देशके भीतर व बाहर व्यापार करते थे) लोगोंने और मुम्मुरिदण्ड संघने अपने स्थानीय प्रतिनिधियोंके द्वारा, चैत्र और पवित्र पर्वके दिन भगवान्की अष्टविध पूजार्थ, वस्त्र, सोंठ, हळदी, धान्य आदि वस्तुओं पर चुंगी करले प्राप्त आयमेले कुछ भाग दानमें दिया । इसी तरह राइलेट्टिने भी भूमि दानमें दी ।
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[ नोट
-इस शिलालेखसे तत्कालीन राज्यशासनके शब्द, धार्मिक पर्व और दातव्य वस्तुओं पर प्रकाश पड़ता है । चैत्र पर्व उक्त भगवान् की पूजाके लिए चैत्र महीनेमें मनाया जाता था तथा पवित्र पर्व ज्येष्ठ या असादसे लेकर कार्तिक तक किसी एक महीने में मनाया जाता था जिसमें मूर्तिके गलेमें व अन्य अंगों में सूत या सिल्ककी मालाएँ पहिनायी जाती हैं ।]
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सेडमके एक जीर्ण जैन मन्दिरसे प्राप्त प्रशस्ति लेख, संस्कृतमिश्रित कन्नडमे ( लगभग सन् ११३८ इ. )
श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलांछन [1] जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं । [ १ ] श्रीमूल संघोदितकोंडकुंदनुच्चान्वयोदम्वति सद्विनूत [ । ] क्राणूर्गणोभूगुणरत्नराशिस्तस्मिंश्च गच्छोजनि तित्रिणीकः ॥ [२] तस्यान्वये श्रीनिळोप्यबेश्मा भूविश्रुतो विश्रुतपारवा [1] चतुःसमुद्रश्रितझुद्धकीर्त्तिः सिद्धान्तदेवः स चतुर्मुखाख्यः ॥ [ ३ ]
भवरिंदनंतरं भूभुवनप्रख्यातरेनिबरं मेगळ्द बळि [1] कवदातकीर्तिलक्ष्मीप्रवरं श्रीवीरणदियतिपति नेगन्ददं ॥ [ ४ ] भवरप्रशिष्यरान तभुवनश्रीरावर्णविसैद्धांतिकरुं [1] कविगमकिवादीवाग्मिप्रवरर्नेगळ्द र्हदि सैद्धांतिकरुं ॥ [५] भारावर्णदिशिष्यर्तार।वळविशदकीर्ति पसरिसे नेगळ्द [1] रूपमान धैर्यश्रीरमणपद्मनंदिसैद्धांतेशरु ॥ [६]
तष्ठियर् ॥
मुनिसुमद्रसमरनुपमचारित्रचक्रवर्ति पेसवें ।] तनवधियिनेळ्दर खिळावनियोळ् सैद्धान्तवक्रवर्तिप्रवरर ।। [७] तदंतेवासिगढ़ ||
दळितमदनडुर्म कंबुठितमदप्रततिमूलकुद्दाळनेनलु [1] कुलभूषणनं जिनमुनिकुळभूषणनं पोगबर्निनेयो गळ्यों ॥ [ 6 ] तदविमुनींद्र शिष्यप्रशिष्य संतानदोलु ॥
धरेयोक् बेदु [ देवं ] समनिसितेनहमतिश्री मनंगों