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No I. Sanghavi PĀŅĀ नम(मि)वि जिणवर निजियाणंग
छत्तीस गुणगणपवर सुगुरु पणमवि सुभाविहिं । धम्मु जु जीवह दयसहिउ सयलसुक्खदायगु सहाविहि चउविह संघ वि सुरमहिउ मुत्ति-निविणि-हारु वयरसामि-सुचरिउ भणिसु भवियण-मंगलकारु
End:
झाअउ अणुदिणु चंदगच्छि देवभद्दसूरि दक्ख
फुरइ जिणप्रभसूरि समण-गुण लक्ख । नाणि चरणि गुणि कित्ति समहू
देउ वयरसामि-चरिउ आणंदु ॥ ५८ ॥ झाअउ अणुदिणु सोहग्गमहानिहिणो गुरुणो सिरिवयरसामिणो चरियं । तेरह सोलुत्तरए रइयं सुहकारणं जयउ ॥ ५९ ॥ जिम जिणेसरि थुणिइं म(ज)ह पु(बु)त्तु सुअकेवलि
गणहरि पवरि नाणलिद्ध(लद्धि)संपुन्नगुणहरि जह समत्ति चरित्ति थिरि दाणि सी लि तवि पुन्नु मटाहरि तह भवियण तं वि(थि)रु हवउ वयरसामि-सुचरित्त
___ पढंत गुणंत सुणंतह संवेगु धरंत ॥ ६० ॥ (१८) उपदेशकन्दली.
प. १३०-१३७ (१९) ज्ञानप्रकाशकुलक by जिनप्रभ. प. १३७-१४३ End:
ज्ञानप्रकाशकुलकं रचितमिदं श्रीजिनप्रभाचार्यः ।
श्रीशजयसत्तीर्थसेविभिर्मोहनाशाय ॥ ११४ ।। (२०) विचारगाथा (?). ___ प. १४३-१५३+१ Beginning:
जयइ जयह जिणधम्मो विवेयरम्मो पणासीयकुहम्मो।
उवसमपुरपायारो पयडियनाणाइपायारो ॥ १ ॥ त जयइ जगि सिरिजिणवरविंद जसु पय पणमइ सयलमुरिंद । परिवजिय सावजारंभ नर[य]कूव निवडतह खंभ ॥ २॥ त दुल्लहु लहिउ सुमाणुसजम्मु कहवि कहवि सिरिजिणवरधम्मु ।
तत्थ वि बोहिवीउ पुण रम्मु जं निहणइ दुढ दृ वि कम्मु ॥ ३ ॥ End: