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________________ 154 PATTAN CATALOGUE OF MANUSCRIPTS (६) आहारविशुद्धि (प्रा० मध्ये त्रुटित ). प० १२८ - १५७ Beginning: जीवा सुसिणो तं सिमि तं संजमेण सो देहे । सो पिंडेण सदोसो सो पडिकुट्ठो इमो नेय || आहाकम् मुद्देसिय-पूइयकम्मे य मीसजाए अ । ठवणा - पाहुडियाए पाओयर-कीय - पामि ॥ २ ॥ Contains Gujarati translations rendered from Prakrit. प. १३५ - सीका हेठइ दोर बांधिव । हिट्ठिलउ दोरउ ऊपलउ वेउ हाथि धरेवा । जउ पाणिउ प्रत्यासन्नु खरउ खरडं सीकं गियउ होइ त हेट्ठिलउ दोरउ तावउ । जिम्व पाणिडं पाणिय मिलइ किम्वइ तहिं ठाविं घातणं न लाभई त क्षीरवृक्षtos नेउ पात्रु मेल्हइ अथवा पात्रु दुर्लभु त खापरउं नवरं पाणीइ अचेतनि भीजविउ जिव सचित्तु पाणिउ तहिं आवट्टइ नहिं इं ति नववटवृक्षादिकहेठइ तहिं घाति उपरि ठवइ । अथवा जइ खापरउ न संपजई त चीखलमाज्झि खावउ खणिउ वटादिपत्र नालु करि उपरि ठवइ ऊपरि पत्रादि छाया करइ पावती म्लांखरेवा विकरइ । प. १३७ - अम्हि जाणाउं वइद तउ पइलउ वइद् पासि पूछइ अथवा भणइ अह अमुक औषधि एउ रोगु उपसांत । × × वलियउ विहरेवा गियउ भणइ जइ हउं तई देखउं तउ मुज्झु आपणी माता आपणउ पिता भाइ वेटउ वहिन वेटी सांभलइ इत्यादि । पश्चात् संबंधे संस्तवो यथा - जड हउं तुम्हि देखं तउ मुझ आपणा सासू सुसरादिक सांभलइ । माय पीय पुवसंथव सासू सुसराइयाण पच्छाउ । × × × (७) आराधना ( प्रा० त्रुटित ). २४०. पञ्चतीर्थि आलेखपट. प. १५८-१६७ Colophon: (१) संवत् १४९० वर्षे फा० व० ३ चंपकनेरवासिप्राग्वाटसा० खेताभा० लाडी सा० गुणेयकेन लेखकारिता । Colophon:— (२) संवत् १४९० वर्षे का० व० ३ चंपकनेरवासि मं. तेजाभा० भावदेसुतको० वाघाकेन प्राग्वाटज्ञातीयेंन श्रीशांतिनाथप्रासादालेखः कारितः । १३x२” २४१. (१) न्यायावतारसूत्र. (२) न्यायप्रवेशक सूत्र. प. १-२; प. २-६
SR No.011005
Book TitleDescriptive Catalogue of Manuscripts in Jain Bhandars at Patan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra B Gandhi
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1937
Total Pages591
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size32 MB
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