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________________ No I. SANGIHAVI PIpA Beginning: जयतु जयतु शश्वन्नेमिनाथो विवश्व(स्व) च्छ्रितसमधिककांतिसृष्टमोहोपशांतिः । उदितविदितचित्रस्फूर्य(ज)दुच्चैश्चरित्रः त्रिभुवनजनबंधुः पुण्यलावण्यसिंधुः ।। त सु(स)मुद(द)विजयनिवअंगरुहं त पुन्निमसोमसमाणमुहं । त जंमतराणी हियइ(?)वरं धरिउ सुदुद्धरु सीलभरं ॥ १ ॥ End: गुहिरु तूरु वायंति केवि केवि जय जय रखु भासहिं अक्खवत्तु आणंति केवि केवि दहि दोहु पयासई । गंधोदग वरसहिं केवि [केवि] फल्ल-फुल्लिहिं वरसंति लूणु सलिलु उत्तरहि केवि केवि आरत्तिउ दरसहिं(०संति)। इय अमंद आणंदभरि केवि केवि नचंति जणि नेमिकुमरि सो मयणभडु लीलइ जित्तइ जेणि खणि ॥ २४ ॥ श्रीनेमिनाथबोली समाप्ता । A. Beginning: णटिहिटि नटहिटि etc. वीरनाह आरत्तियह ॥ १ ॥ तिम न रयणि ससिहर(रि)ण तिम न सूरिण गय[f]गणु तिम न विंझ करिवरिण तिम न वीरिण समरंगणु । तिम न पइविण भवणु तिम न नरनयर नि(न)रिंदिण हंसिण तिम न तलाउ तिम न मुरसंघु सुरिंदिण । वणु तिम किंपि न कंठीरविण सच्चवयणु जणु जणु कहइ जिम सामिय नेमिजिणंद! पई उजयंतु गिरिवरु सहह ॥ End: अविचल लक्खण जाणु नाणु सञ्चउं परियाणइ छंदमग्गु तह मुणइ निचु आगमु वखाणइ । बहुपयार कविसिक्ख तक जंपइ बहुसग्गह सुललिय गिय भारहह ताल वुझइ तह रंगह । विजानिहाणु भुवणत्तयह भ(च)दप्पह न हु कोइ समउ कसमीरि मुड ! तुम्हि मत गमहु जंगमवाईसरि नमहु ॥ १३ ॥
SR No.011005
Book TitleDescriptive Catalogue of Manuscripts in Jain Bhandars at Patan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra B Gandhi
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1937
Total Pages591
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size32 MB
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