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________________ : २३ : गुरुवर ! तुम्हारे जीवन से दिव्य ज्योति पाएं । फिर एक बार सोए संसार को जगाएं || दृढ़ लक्ष्य कौन ऐसा ? हो दूसरा धरा में 1 आराध्य ! श्रीचरण में, लो प्राण ये चढ़ाएं ॥१॥ आदर्श वह अहिंसा, पल-पल की साधना में । हिसा ने हार मानी, इतिवृत्त क्या बताएं ? २ || वह सत्य सत्य - निष्ठा, स्रोतस्विनी प्रतापना तपस्या, किसका कहो किनारे । सुनाएं ॥ ३ ॥ अस्तेय की शुभाभा, जन-जन के मन में छाई । विश्वस्त थे सभी के, गौरव से गीत गाएं ||४|| , वर्चस्व ब्रह्म व्रत का साहित्य है दिखाता । नवशील की वे बाड़ें, पढ़ आत्म-वल बढ़ाएं ||५|| अपरिग्रहीश ! अनुपम, निस्संगता तुम्हारी । अनशन में श्रात्म-दर्शन, लो वन्दनार्चनाएं || ६ || निश्छल, उदार, व्यापक, अध्यात्म चेतना में | 'तुलसी' सदैव पनपे, वे भिक्षु भावनाएं ॥ ७॥ वि० सं० २०१५, चरम महोत्सव, कानपुर (उत्तरप्रदेश) लय --- इतिहास गा रहा है ५६] [ श्रद्धेय के प्रति
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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