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निज निर्मित उपवन की ग्राभा, कैसी खिली विश्व में वाह वाह, क्यों नही निजर निहारे बावा, इक पल हित पलक विछाजा । तू मन मन्दिर में
ग्राजा ||
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करें ग्राज शत-शत ग्रभिनन्दन, कोटि कोटि तेरा अभिवन्दन, संघ संघपति ' वदना नन्दन', सव का दिल कमल खिला जा । तू मन मन्दिर में ग्राजा ||
वि० सं० २००४, चरमहोत्सव, रतनगढ़ (राज० )
[ श्रद्धेय के प्रति