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वाह्याभ्यन्तर मे इक भिक्षु, कहनी करणी मे इक भिक्षु, सकट या दु ख मे इक भिक्षु,
क्या क्या गौरव वाले ॥८॥ मडप गूज उठा दश-दिक्षु, करें प्रतीक्षा कीति-विवक्षु, 'तुलसी' रोम-रोम मे भिक्षु,
प्रतिपल सुमरन वाले ॥७॥
वि० स० २००३, मर्यादा-महोत्सव, चुरु (राज.)
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