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________________ सब जग को माया त्यागी, आन्तरिक प्रेरणा जागी, एकाकी वीर विराग, तपोवन-वास, अटल उपवास, सजग प्रति श्वास, खास जव कर्म कटक ने घेरा ॥३॥ जो बही उपद्रव धारा, सुर नर तिर्यञ्चों द्वारा, हिम्मत को कभी न हारा, कष्ट मरणान्त, सहे चित्त शान्त, न दिल विभ्रान्त, त्रिवेणी संयुत मोह बिखेरा ॥४॥ वनकर प्रभु केवलनाणी, बरसाई अमृत वाणी, आध्यात्मिक सुख-सहनाणी, विश्व उत्थान, प्रयत्न महान्, महा अभियान, महाव्रत, अणुव्रत सुखद सबेरा ॥५॥ गोतम से गणधर भारी, सती चन्दनवाला तारी, है सब तेरे आभारी, अमित उपकार, किया जगतार, अहिंसा द्वार, जगत, शिव-पथ का किया निवेरा ॥६॥ [श्रद्धेय के प्रति १२]
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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