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श्रो भिक्ष स्वामी द्योनी मोहि भक्ति तुम्हारी, भक्ति तुम्हारी प्रभु शक्ति तुम्हारी।
युक्ति मुक्ति पथवारी ।। भक्ति विशाली भाली भगवन् निराली ।
सुर हुए चरण पुजारी ॥१॥ शक्ति तुम्हारी प्रभु सत्य सपथ पर।
यात्मवली करनारी ॥२॥ युक्ति तुम्हारी भारी वर्णन-वर्णन ।
जाण सकल ससारी ॥३॥ तीन चीज की रीझ जो पाऊ ।
तो होऊ त्रिभुवन सचारी ॥४॥ चारुवास छापुर विच सुमरै ।
_ 'तुलसी' नवम पटधारी ॥५॥
सय-श्याम कल्याण
गुरु]
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