________________
ॐ जय-जय त्रिभुवन अभिननन्दन विगलानन्दन तीर्थपते । अयि विशनानन्दन तीर्थपते । प्रायि र लुप निकन्दन विश्वपते ।
* जय-जय त्रिभुवन अभिनन्दन ।।
तिमिगच्छादित भुवन मे रे । दिव्य दिवारर उदित भयो, मरण-मग्ण निज हिरण पसारे, मारे जग जागरण हयो।
निद्रा धूणित जन बोध नमो ॥१॥
अतुल अहिंमा पमं गे रे । ममं दिमायो महितल मे, प्रक्षय अनुपम अविचल अनिमल मुग पाव ज्यू भवि पल में।
न नई गरट जग हरफन मे ॥२॥
पियपुर पायापुर थी रे । पावन गोलो अघ लिया, टिचिटिमटिटिग्रिम टिम टिम बाज, धौ धौ अपमप मादलिया।
ग्यणायनिया पावनिया र मोना गुर नर गह मिलिया
|
गषि प्रभु nि मेरे । तो पिण नंगपाप मिागम विना निरा, नन्नयन पसार मित।
fT नोग्य प्राण प्रा सि, गुण परिमन प्रगर पागिरं ॥
(0