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________________ प्रश्नों के उत्तर रण भी बिगड़ जाता है । विषय-वासना की आग भी अधिक प्रज्वलित हो उठती है । यह सत्य है कि विषय-वासना पर काबू पाना कठिन है । महान् ताक़तवर आत्मा ही विषय विकारों पर विजय पा सकता है। पर, इसका यह अर्थ नहीं कि उस पर नियंत्रण ही न रखा. जाए । नियंत्रण में रही हुई आग जीवन के लिए उपयोगी होती है, परन्तु कन्ट्रोल से बाहर होने पर वही ग्रांग जीवन के सभी उपयोगी साधनों को जला कर भस्म कर देती है, हरे-भरे जीवन की फुलवाड़ी को बर्बाद कर देती है । यही स्थिति काम वासना की है। इसलिए इस पर नियंत्रण होना ज़रूरी है । "भारतीय संस्कृति के सभी विचारकों ने इस बात पर जोर दिया कि यदि मनुष्य पूर्णतः वासना का त्याग करने में असमर्थ है, तो कम से कम वह वासना पर नियंत्रण श्रवश्य रखे । अर्थात् अपने जीवन को मर्यादा के बाहर नहीं जाने दे। एक बार एक पाश्चात्य विचारक से एक व्यक्ति ने पूछा- मैं अभी भोगों पर विजय पाने में असमर्थ हूँ । श्वतः मुझे कितनी बार विषय सेवन करना चाहिए ? विचारक - यदि तुम अभी भोगों पर काबू पाने की शक्ति नहीं रखते हो, तो जीवन में एक बार वासना के प्रवाह में गोता लगाकर बाहर निकल आओ । व्यक्ति - यदि एक बार से तृप्ति न हो तो क्या करू ? विचारक- वर्ष में एक बार अपनी भावना को तृप्त कर लो । व्यक्ति - यदि इतने पर भी सन्तोष न हो तो क्या करू ? विचारक- तब फिर महीने में एक बार से अधिक अपने मन को, 'विचारों को, शरीर को उस प्रोर मत जाने दो । व्यक्ति- इस पर भी मन नहीं माने, भोगेच्छा बनी रहे तो. ४३४. 2
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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