SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्नों के उत्तर ४३०. महापुरुषों ने शराब से होने वाले कुछ दुर्गुणों का बड़े सुन्दर एवं मार्मिक शब्दों में उल्लेख किया है । आचार्य श्री हरिभद्रसूरि लिखते हैं - "वैरूप्यं व्याधिपिण्डः, स्वजन - परिभवः कार्यकालातिपातो, विद्वेपो ज्ञाननाशः स्मृतिमति - हरणं विप्रयोगश्च सद्भिः । पारुष्यं नीचसेवा कुलचलबिलयो धर्मकामार्थहानिः, कष्ट वै पोडशैते निरुपचयकरा मद्यपानस्य दोषाः ॥ " अर्थात् - मदिरा के सेवन से १६ दोषों की उत्पत्ति होती है । जैसेकि - १- शरीर कुरूप और वेडौल हो जाता है । २-शरीर में अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं । ३ परिवार के लोग घृणा की दृष्टि से देखते हैं । ४-काम करने का सुन्दर समय यों ही बीत जाता है । ५-द्वेष उत्पन्न हो जाता है । ६- ज्ञान का नाश हो जाता है । ७-स्मृति का नाश होता है । ८- बुद्धि को ताले लग जाते हैं । ९- सज्जनों से पृथक हो जाता है। १० - वाणी में कठोरता श्रा जाती है । ११- नीच व्यक्तियों की सेवा करनी होती है। १२- कुल की निन्दा होती है । * हरिभद्रीयाष्टक श्लोक १९.
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy