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________________ प्रश्नों के उत्तर ४२२ कर दिया। प्रस्तु, अहिंसा एवं दया-प्रे मानव के मन में दृढ़ विश्वास होना चाहिए और वीमारी के समय तो क्या, मृत्यु-शय्या पर पड़े हुए भी ऐसे पदार्थों के सेवन का संकल्प तक नहीं करना चाहिए। ..... . इस तरह हम देख चुके हैं कि धार्मिक, आध्यात्मिक, स्वास्थ्यशक्ति एवं आर्थिक आदि सभी दृष्टियों से मांसाहार नुक्सानप्रद है। यहः . नीति का वाक्य है कि मांसाहारी मनुष्य के जीवन में दया का निवास 'नहीं रहता- "मांसाशिनि कुतो दयो ?" जिसके मन में पशु-पक्षियों के प्रति दया और करुणा का भाव नहीं होता, उसके हृदय में इन्सान के : प्रति दया, करुणा एवं सम्मान की भावना नहीं जग सकती । आज जो: मनुष्य में क्रूर भावना अधिक बढ़ रही है, उसका कारणं तामसिक आहार ही है। आजकल भोजन के संबंध में मनुष्य इतने नीचे स्तर पर पहुंच गया है कि उसे भक्ष्याभक्ष्य का ज़रा भी विवेक नहीं रहता। १४-७-१९५९ के दैनिक हिन्दुस्तान में “यह मांसाहारी दिल्ली।" शीर्षक से एक समाचार प्रकाशित हुआ है । उसमें लिखा था कि"राज-.. धानी दिल्ली ] में मांस खाने की प्रवृत्ति किस सीमा तक पहुंच चुकी. है? उसका आपको इस बात से पता चलेगा कि दिल्ली में प्रति दिन १: लाख ४० हजार अण्डे तथा ७०० मुर्गी की खपत है । इसमें बकरे तथा अन्य पशु-पक्षियों के गोश्त की खपतः शामिल नहीं है। बताया जाता है कि राजधानी की मांग इससे भी अधिक है और इस मांग को पूरा करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा रहे हैं । इस योजना ' पर ४ लाख ७५ हजार रुपये खर्च होने का अनुमान है।" .. :: : इन प्रांकड़ों से हम अनुमान लगा सकते हैं कि मनुष्यों का जीवन कितना भयावह बनता जा रहा है। अहिंसा के बल पर आज़ादी प्राप्त - करने वाले भारत में मांसाहार की अभिवृद्धि होते हुए देखकर सच.
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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