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________________ अपनी बात 'प्रश्नों के उत्तर' का प्रथम खण्ड पाठकों की सेवा में समर्पित . . किया जा चुका है। आज द्वितीयखण्ड समर्पित किया जा रहा है। पहले खण्ड में दार्शनिक और तात्त्विक चर्चा थी तथा दूसरे खण्ड में ... धार्मिक एवं सैद्धान्तिक विचारों की चर्चा की गई है। दोनों खण्डों में : १८ अध्याय है । ९ अध्याय प्रथम खण्ड में और ९ द्वितीय खण्ड में हैं । प्रथम खण्ड की अपेक्षा द्वितीय खण्ड बड़ा हो गया है। पहले खण्ड में ३६२ पृष्ठ हैं, दूसरे में ५८२। इस तरह पूरी पुस्तक के ९४४ पृष्ठ होते हैं । इस पुस्तक में निम्नोक्त १८ अध्याय हैं" १. जैनधर्म २. तत्त्वमीमांसा ... ३. बन्धमोक्षमीमांसा ४. जैनधर्म का अनादित्व - ५. 'आस्तिक-नास्तिक-समीक्षा ६. ईश्वर-मीमांसा ७. जैनधर्म और वैदिक धर्म : जैनधर्म और बौद्धधर्म . . ९ जैनधर्म और चार्वाक १०. सप्त कुव्यसन परित्याग ११. प्रागार धर्म १२. अनगार धर्म १३. चौवीस तीर्थंकर १४. स्थानकवासी और अन्य . जैन सम्प्रदाएं १५. जैनपर्व १६. भाव-पूजा १७. जैनधर्म और विश्वसमस्याएँ १८. लोक-स्वरूप .... इस पुस्तक की रचना के लिए जिन-जिन पुस्तकों का साहाय्य . लिया गया है, वे ५१ पुस्तकें हैं । इन का नाम-निर्देश प्रथम-खण्ड में . कर दिया गया है। जिन-जिन विद्वान मुनिराजों तथा गृहस्थों के .. सतत परिश्रम से लिखी पुस्तकों का सहयोग पाकर मैं अपने चिरसंकल्प को मूर्तरूप देने में सफल हो सका हूं, हृदय से मैं उन सब का : आभारी हूं, धन्यवादी हूं। दूसरे खण्ड में कुछ अध्याय ऐसे मिलेगें, जिन में केवल..
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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