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________________ दशम अध्यायः mmmmmmmmmmmmmmmmmmm अक्षरी एवं भौतिक ज्ञान की न्यूनता एवं अधिकता नहीं, बल्कि विवेक को न्यूनता-अधिकता का है। और विवेक की कमी पाश्चात्य देश के बड़े-बड़े वैज्ञानिकों; इंजिनियरों, राजनेताओं एवं व्यापारियों में स्पष्ट परिलक्षित होती है। उनकी दृष्टि अपने तक ही सीमित है। वे सबसे पहले अपना स्वार्थ देखते हैं और अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए: अपने ज्ञान का प्रयोग करते हैं। अतः उन की दृष्टि में जग का हितः.. नहीं, अपना हित ही समाया रहता है और अपने हित एवं स्वार्थ को साधने के लिए मार्ग में आने वाले सभी प्राणियों को- चाहे.पशु-पक्षी. हो; कोड़ा-मकौड़ा हो-रौंदते, कुचलते चलते हैं, चारों तरफ हाहाकार... मचा देते हैं। वम्ब, रिवॉलवर, राइफल्स से ले कर राकेट, अणु, उद्- . जन हाइड्रोजन एवं नाइट्रोजन बम्ब, जैसे-विनाशक एवं भयावने शस्त्रों के निर्माता:मांसाहारी दिमाग़ ही है। हां, तो मैं बता रहा था कि उन... . का दिमाग़ चलता है-- दुनिया के प्राणियों का संरक्षण करने की ओर .. नहीं, बल्कि विश्व का विनाश करने की ओर । और इसी का परिणाम.. है कि उन्होंने अाज विश्व को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया है। आणविक शस्त्रों की घुड़दौड ने सारे विश्व में तहलका मचा दिया है। .. विश्व का प्रत्येक व्यक्ति भयभीत है; संत्रस्त है। इसका कारण यही है ... कि उनमें विवेक की कमी रही है.। और विवेक के अभाव में विज्ञान .. आज मानव के लिए वरदान नहीं अभिशाप बन रहा है। ... पाश्चात्य देशों में ज्ञान-शिक्षा का विकास अवश्य हुआ है, परन्तु उसके साथ मुक्ति की दृष्टि न होने से उसका भी विशेष मूल्य नहीं.. रह जाता है । जीवन मुक्ति की बात ज़रा दूर रहने दें, पर पारिवारिक एवं राष्ट्रीय दुःखों तथा संक्लेशों से मुक्त करने वाला तो होना चाहिए.। परन्तु वर्तमान शिक्षा इस दिशा में भी असफल रही है। आज पाश्चात्य एवं पूर्वीय देशों में जितने शिक्षित व्यक्ति संक्लेशों से .. . . . . . .. . . 7 . . . ...
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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