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________________ ९१३ प्रश्नों के उत्तर क्यार्य देश में पैदा होते हैं । जो इश्वाकु, विदेह, हरि, ज्ञात, कुरु, उग्र ग्रादि वंशों में पैदा होते हैं वे जाति से प्रार्य हैं। कुलकर, चक्रवर्ती, वलदेव, वासुदेव और दूसरे भी जो विशुद्ध कुलवाले हैं, वे कुल से प्रार्य हैं। पठन पाठन, कृषि, लिपि, वाणिज्य आदि से आजीविका करने वाले कर्म से प्रार्य हैं। जुलाहा, नाई, कुम्हार आदि जो अल्प आरम्भ (हिंसा) वाली और अनिन्द्य आजीविका से जीते हैं वे शिल्प आर्य होते हैं। जो शिष्ट- पुरुष - मान्य भाषा में सुगम रीति से बोलने आदि का व्यवहार करते हैं, वे भाषा से श्रार्य हैं । इन छः प्रकार के ग्रार्यो से विपरीत लक्षण वाले सभी लोग म्लेच्छ कहलाते हैं । आर्य और म्लेच्छ सभी लोग जहां रहते हैं उसे मनुष्य-लोक कहते हैं । इसी मनुष्य लोक को अढ़ाई द्वीप कहते हैं । अढाई द्वीप में जम्बूद्वीप, धातकीखण्डद्वीप और पुष्करार्व द्वीप आते हैं । पुष्करार्ध द्वीप के चारों ओर ३२ लाख योजन का पुष्कर समुद्र है । इसी प्रकार आगे एक द्वीप और एक समुद्र के क्रम से द्वीप और समुद्र हैं । ये सब द्वीप और समुद्र एक दूसरे से दुगुने - दुगुने विस्तार वाले हैं। तीन द्वीपों और तीन समुद्रों का वर्णन किया जा चुका है । आगे के कुछ द्वीपों और समुद्रों . के नाम इस प्रकार हैं ५ हिरण्यवत, ये ३० अकर्म-भूमियों के क्षेत्र कहे गए हैं । श्रकर्मभूमि के मनुष्य १० प्रकार के कल्प वृक्षों द्वारा अपनी इच्छाएँ पूर्ण किया करते हैं । +१५ कर्मभूमियां, ३० कर्म-भूमियां और ५६ अन्तद्वीप इस प्रकार उक्त सब मिला कर १०१ मनुष्यों के रहने के क्षेत्र हैं। इन में श्रकर्म-भूमियों और श्रन्तद्वीपों में युगलिए मनुष्य रहते हैं । वे देव सरीखे पूर्वोपार्जित शुभ कर्मों के शुभ 'फल भोगते हैं । धर्म की तनिक आराधना नहीं कर सकते । धर्माराधना के योग्य कर्मभूमि के ही केवल १५ क्षेत्र हैं । इन में से पांचों महाविदेह-क्ष ेत्रों में तो सदैव धर्म की प्रवृत्ति वनी रहती है किन्तु पांच भरत और ५ ऐरावत इन १० क्षेत्रों में दस-दस •
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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