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________________ प्रश्नों के उत्तर ~~~imirm~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ixmmmmmin. i n . .. परमाधामिक देव तीसरे नरक तक ही जाते हैं, आगे नहीं। इस लिए आगे के चार नरकों में क्षेत्रस्वभाव-जन्य और परस्पर-जनित ये दो प्रकार की ही वेदनाएं होती हैं। इन चार नरकों में परमाधार्मिक देवकृत वेदनापों का नारकीय जीवों को उपभोग नहीं करना पड़ता। ... . .. .. .... नरकावास की भीतों में विल के आकार के नारकियों के । . उत्पन्न होने के स्थान बने हुए हैं । पापी जीव इन्हीं स्थानों में उत्पन्न होते हैं। नरकीय जीव विलस्थान में उत्पन्न हो कर दो घड़ी के अनन्तर विल के नीचे रही हुई कुभी में नीचे सर और ऊपर पैर करके गिरते हैं। ये कुम्भियां ठीक विल के नीचे पड़ी रहती हैं। ये चार प्रकार की होती हैं-१-ऊंट की गरदन के समान टेढ़ी-मेढ़ी, २-धी के कुप्पे के समान जिस का मुख चौड़ा और अधोभाग सकड़ा ... (तंग भाग) होता है, ३--डिब्बे के सामान, जो ऊपर नीचे बराबर ... परिमाण वाली होती है, ४-अफीम के दौड़े जैसी, पेट चौड़ा और मुख . सांकरा तंग)। इन चार प्रकार की कुम्भियों में से किसी एक कुम्भी में मिलना उपक्रम है। ऐसा उपक्रम अपवर्तनीय आयु में अवश्य होता है, क्योंकि यह आयु नियम से कालमर्यादा समाप्त होने से पहले ही मोगने योग्य होती है। परन्तु . अनपवर्तनीय आयु सोपक्रम और निरुपक्रम दोनों प्रकार की होती है । इस आयु को अकालमृत्यु लाने वाले उक्त निमित्तों का संनिधान होता मी है और नहीं भी होता । उक्त निमित्तों का सन्निधान होने पर भी अनपवर्तनीय आयु नियत काल-मर्यादा से .. पहले पूर्ण नहीं होती। .. . औपपातिक जीव (नारकीय और देव), चरम-शीरी (जन्मान्तर किए बिना इस शरीर से मोक्ष जाने वाले), उत्तम पुरुषों (तीर्थंकर, चक्रवती, वासुदेव आदि) और असंख्यात् वर्ष-जीवी (असंख्य वर्षों की आयु वाले) जीवं अनपवर्तनीय आयु वाले ही होते हैं। .. .... -
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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