SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्नों के उत्तर करता, बल्कि सदा पतन के गर्त में गिरता है. ? किन्तु वस्तुस्थिति इस सत्य से विपरीत है । व्यवहार इस बात का समर्थक नहीं है। पाश्चात्य देशों के अधिकांश व्यक्ति मांसाहारी हैं। फिर भी बुद्धि, दल एवं सम्पत्ति में ये सभी पूर्वीय देशों से आगे हैं । अंग्रेजों की कूटनीति तो प्रसिद्ध ही है। रूस एवं अमेरिका शक्ति एवं सम्पत्ति में भी संबसे आगे है । रूस का राकेट चन्द्रलोक पहुंचने का दावा कर रहा है। वैज्ञानिक क्षेत्र में की गई उन्नति इस बात का ज्वलन्त प्रमाण है । हाँ तो बौद्धिक एवं वैज्ञानिक क्षेत्र में जितनी उन्नति पाश्चात्य देशों के मांसाहारियों ने की है। उतनी तो क्या,भारतीय शाकाहारियों ने उसके शतांश भी उन्नति नहीं की । अतः क्या यह कथन सत्य से परे एवं केवल द्वेष का प्रतीक नहीं है कि मांसाहारियों का सर्वतोमुखी पतन ही होता. है, उनमें बुद्धि की स्थूलता ही रहती है ...... उत्तर- इतना तो सूर्य के उजेले की तरह स्पष्ट है कि मांसाहार स्वयं . ही एक दोष है। क्योंकि अपने स्वार्थ के लिए, जिह्वा के क्षणिक स्वाद के लिए किसी भी निरपराध त्रस प्राणी को मारना जघन्य दुष्कृत्य है, सबसे बड़ा पाप है । अंब रहा प्रश्न स्वभाव एवं उन्नति का? इसका उत्तर यह है कि स्वभाव में क्रूरता, बुद्धि की स्थूलता एवं पतन.. के कई · कारण हैं, ये दोष केवल मांसाहार जन्य ही नहीं है। मोहनीय एवं ज्ञा नावरणीय कर्म के उदय से भी व्यक्ति अनेक दोषों के प्रवाह में बह ... जाता है । अतः जब यह कहा जाता है कि मांसाहारी का स्वभाव क्रूर . होता है, उसकी बुद्धि में स्थूलता होती है तथा उसका जीवन विकास
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy