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________________ सतरहवां अध्याय आग को शान्त नहीं कर पाई थी, उस आग पर किसने पानी डाला था? एक कण्ठ से नहीं, हज़ारों कण्ठों से यही कहना होगा कि अहिंसा ने । कोरिया के मैदानों में शान्ति तथा अमन का ध्वज़ . अहिंसा ने लहराया था। इतिहास बताता है कि जब भी कहीं सेना . . भेजी जाती रही है तो वह केवल शत्रुओं का दमन करने के लिए या अपनी महत्ता का विकास करने के लिए, किन्तु केवल विश्ववन्धुत्व और शान्ति स्थापित करने के लिए आज तक कोई भी सेना किसी भी राष्ट्र की ओर से नहीं भेजी गई। अहिंसा के अग्रदूत भारत वर्ष ने कोरिया में अपनी सेनाएं भेज कर अपना राष्ट्रीय कर्तव्य पालन करने के साथ-साथ अहिंसा की सार्वभौमिकता तथा विश्वसमस्याओं को समाहित करने में उसकी क्षमता को सिद्ध करने का बहुत उत्तम प्रयास किया है। अहिंसा-सिद्धान्त विश्व को सर्वतोमुखी अभ्युदय और शान्ति का विश्वास प्रदान करता है । इतिहास इस बात का गवाह है कि जैन नरेश चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन में प्रजा का जीवन बड़ा शान्तिपूर्ण और पवित्र था, वैरविरोध, ईर्षाद्वेप तथा हिंसा, असत्य आदि पापों से प्रजा प्रायः दूर रहती थी, वह उन्नति और समृद्धि के शिखर पर विराजमान थी। वर्तमानयुग में भी अहिंसा के महाप्रकाश में .. जो लोग अपना जीवन व्यतीत व रते हैं, वे अन्य समाजों की अपेक्षा ... . अधिक समृद्ध और सुखी नज़र आते हैं। यह वात भारत सरकार के ... रिकार्ड में भली भांति देखी जा सकती है, जिसके आधार पर एक : बार एक उच्च राष्ट्रीय राजकर्मचारी ने कहा था कि "फौजदारी : अपराध करने वालों में जैनों की संख्या प्राय: शून्य है। जैनों का परम अराध्य धर्म अहिंसा है। जैनों में फौजदारी की वृत्ति की न्यूनता का कारण उन की अहिंसकता ही है"। ... ग्राज स्वार्थ-परायणता ने मानव पर अपना अखण्ड साम्राज्य
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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