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________________ सतरहवां अध्याय .. - आज के वैज्ञानिक कुछ भी समझते रहें और कुछ भी कहते रहें किन्तु यह दृढ़ता के साथ कहा जा सकता है कि विज्ञानजन्य युद्धसामग्री चाहे कितनी भी जुटा ली जाए, और चाहे कितने भी वम तैयार कर लिए जाएं पर इस से संसार में शान्ति स्थापित नहीं हो सकती । ये युद्धसाधन विश्व की समस्याओं को कभी समाहित नहीं कर सकते । मकान की नींव में पानी डाल कर उसकी दृढ़ता के स्वप्न देखने से क्या मकान की नींव दृढ़ हो सकती है ? आग से आग को शान्त किया जा सकता है ? यदि गंभीरता से विचार किया जाए तो यह मानना पड़ेगा कि आज का मानव धधकते अंगारों को चमकता हुआ हीरा समझ बैठा है, आक के वोज वोकर आम्रफल खाना चाहता है । खून से सने वस्त्र को खून से शुद्ध करना चाहता है और हिंसा की आग से विश्व के उद्यान को ह्राभरा देखना चाहता .... है। पर यह उसकी भूल है। विश्व में शस्त्रों, अस्त्रों से शान्ति । . स्थापित नहीं की जा सकती। बड़े-बड़े वम भी विश्व की समस्याओं को समाप्त नहीं कर सकते । इन हिंसापूर्ण साधनों द्वारा विश्व में अमन स्थापित करने का विचार स्वप्न ही समझना चाहिए। यह . सत्यता तथा यथार्थता का रूप कभी नहीं ले सकता। . .. ... विश्व की समस्याओं का समाधान न युद्ध से हो सकता है, .. ...और न युद्ध जनक शस्त्र-अस्त्रों का निर्माण करके संसार को भयभीत । . . करने से । विश्व की समस्याओं का समाधान जव कभी होगा तो वह . केवल जैनधर्म के निर्दिष्ट अहिंसा के महापथ पर चलने से ही होगा। ... अहिंसा ही संसार में शान्ति की स्थापना कर सकती है और अहिंसा ... ही स्वार्थ की भावना को मिटा कर विश्व में भ्रातभावना का प्रसार .. कर सकती है। किसी के साथ वुरो भावना या द्वेषभाव न रख कर सभी के साथ-प्रेम और मित्रता का व्यवहार करना अहिंसा है। .. अहिंसा कहती है कि विश्व के सभी प्राणी जीवित रहना चाहते हैं...
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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