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________________ स सोलहवां अध्याय cres भगवान् महावीर का जीवन कहता है कि संगम देव भगवान् महावीर को लगातार छः महीने कष्ट देता रहा। इस के अतिरिक्त ग्रन्य भी ऐसे अनेकों उदाहरण शास्त्रों में उपलब्ध होते हैं, जिन में कर्मफल में देव की निमित्तता सुचारु रूप से प्रकट होता है । "ऐहिक प्रवृत्तियों में देव बाधक या साधक वन सकता है" यह मान कर तथा "देवपूजा संसार वधिका है" यह समझ कर जो व्यक्ति देवी, देवताओं की पूजा करता है, उस व्यक्ति को मिथ्यात्वी नहीं कहना चाहिए। यदि उसको मिथ्यात्वी मान लिया जायगा तो लगातार तीन उपवास करके देवता का आह्वान करने वाले, सम्यक्त्व के बनी चक्रवर्ती, तीर्थकर, वासुदेव कृष्ण यादि सभी पूर्व पुरुष मिथ्यात्वी मानने पड़ेंगे। हां, यदि कोई देवी, देवताओं की पूजा को आत्मकल्याण का साधन मानता हो, और मढ़ी-मसानी की उपासना को धर्म समझता हो, तथा उसे मोहवर्धक न मानता हो तो वह एकान्त मिथ्यात्वी है । फिर उसके मिध्यात्त्री होने में कोई सन्देह नहीं है । प्रश्न- देवपूजा मोहवर्धक होकर सांसारिकता का पोषण करती है तो सम्यक्त्वो का सम्यक्त्व देवपूजा से खण्डित नहीं होता ? उत्तर- सत्य को सत्य समझना, और सत्य को ग्रसत्य के रूप में देखना, इस का नाम सम्यक्त्व है । सम्यक्त्वी बुराई को बुराई : समझता है, और अच्छाई को अच्छाई के रूप में देखता है । जब बुराई को अच्छाई और अच्छाई को बुराई समझ लिया जाता है, तब सम्यक्त्व का घात होता है । सम्यक्त्व का अर्थ यह नहीं होता कि जीवन में कोई भी भूल न हो । सम्यक्त्वी के जीवन में भी अनेकों दोष रह सकते हैं । सम्यक्त्वी
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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