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________________ सोलहवां अध्याय मेरा परिवार सम्पन्न होगा, लड़के की शादी हो जायगी, ऐसी ही अन्य अनेकों लालसाएं होती है, इन्हीं के कारण मनुष्य देवी-देवता को पूजा करता है, देवी देवताओं के मन्दिर में जा कर अलख जगाता है ! धन, जन, परिवार आदि की लालसा मोह को जन्म देती है, या मोह का सम्वर्धन करती है। मोह से संसार की वृद्धि होती. है । संसार की वृद्धि का अर्थ है-जन्म, मरण रूप दुःखों का बढ़ जाना । जन्म-मरण की परम्परा की वृद्धि मुमुक्षु प्राणी को कभी इष्ट नहीं होती । वह तो आत्मा को मोहमाया की बेड़ियों में जकड़ने वाली प्रत्येक प्रवृत्ति से सदा दूर भागता है । कोई भी ऐसा काम नहीं करता जो उसकी प्रात्मा को मोक्ष से दूर ले जाए । इसी लिए आध्यात्मिक दृष्टि से मढ़ी, मसानी की पूजा मोहरूप एवं मोहवर्धक होने से त्याज्य मानी गई है । ८६८. यदि कोई कहे कि मढ़ी-मसानी या देवी-देवता की पूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है या स्वर्ग की उपलब्धि होती है तो यह • उसकी भ्रान्ति है । देवी, देवता में ऐसा करने की शक्ति ही नहीं होती । अशक्त से शक्ति की प्रार्थना करने का कुछ अर्थ ही नहीं होता । धनहीन से जैसे कभी धन की प्राप्ति नहीं हो सकती है । - वैसे ही मोक्ष रूप धन से हीन देवी-देवता से भी मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। दूसरी बात यह कि जव देव देवरूप से स्वयं ही मुक्ति में नहीं जा सकता, और जब देव को देवायु समाप्त होने पर ग्रनिच्छा में ही भूतल पर आना पड़ता है, तो वह दूसरों को मुक्ति और स्वर्ग.. कैसे प्रदान कर सकता है ? यह ठीक है कि जो लोग देव को कर्म फल का निमित्त मान कर देवपूजा करने वाले पर मिथ्यात्वी का प्रारोप लगाते हैं, यह भी ठीक नहीं है । क्योंकि वह सम्यक्त्वी है । पदार्थों के सम्यक् बोध का नाम सम्यक्त्व है, सम्यक्त्व का प्रभाव अर्थात् सत्य को असत्य, असत्य को
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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