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________________ प्रश्नों के उत्तर .३९६: तो इनका क्या बनाना है ? परमात्मा ने इनकी रचना मनुष्य के खाने के लिए ही तो की है। फिर उनका मांस खाने में क्या दोष है ? उत्तर- यह स्वार्थी दिमाग की सूझ-बूझ है कि वह अपना स्वार्थ सा घने के लिए घंट सेंट बोला करता है। देवी उपासकों ने बकरे, भैंसे आदि के लिए स्वर्ग की कल्पना करके अपनी जवान का स्वाद पूरा करने का रास्ता निकाल लिया । तो अन्य मांसाहारियों ने यह दलील देनी शुरु कर दी कि खुदा या परमात्मा ने पशु-पक्षी खाने के लिए ही बनाए हैं । यह इन्सान के पतन की पराकाष्ठा है । पतन एवं गिरावट की भी सीमा होती है, सीमा में रहे हुए दोष सुगमता से दूर हटाए जा सकते हैं । परन्तु स्वार्थ का चश्मा मनुष्य की दृष्टि को, विचारों को इतना धुंधला बना देता है कि उसमें सत्य को समझने की भावना ही नहीं रह जाती। वह जब भी सोचता है, तब दूसरे के सुखों, हितों एवं जीवन को लूट-खसोट कर अपने जीवन को अधिक ग्रामोद-प्रमोदमय एवं हृष्ट-पुष्ट बनाने की ही सोचता है। मांसाहारियों द्वारा दिया जाने वाला प्रस्तुत तर्क इसी स्वार्थी भावना का प्रतीक है । 3 सबसे पहली बात तो यह है कि ईश्वर किसी भी वस्तु का निर्मा ता नहीं है । 1 जगत में जितने भी जीव दिखाई देते हैं, वे स्वयं ही अपने-अपने शुभाशुभ कर्म के अनुसार एक योनि से दूसरी योनि में गति करते हैं। स्वयं ही अपने जीवन के स्रष्टा है । अपने जीवन को विकास एवं पतन, जिस पर भी चाहे ले जाने के लिए प्रत्येक आत्मा स्वतन्त्र है। कोई ईश्वर या देवी शक्ति न किसी को पशु बनाता है और न किसी को मनुष्य । या यो कहिए वह न किसी को भक्षक बनाते 1. इस पर हम पीछे छठे अध्याय में विस्तार से प्रकाश डाल चुके हैं ।
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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