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सोलहवां अध्याय ~~~mmmmmmmmmmmmmmmmmmmminwrrrrrrrrrrai विघ्न उपस्थित होगा, इस लिए शास्त्रों में साधु को चित्रित मकान में ठहरने या चित्रित दीवारों को देखने का निषेध किया गया है।
प्रश्न-स्थानकवासी लोगों के घरों में साधु, मुनिराजों के चित्र प्राय: देखने में आते हैं। क्या उन को वंदन करना चाहिए या नहीं ? यदि नहीं तो वे क्यों लगाए जाते हैं ? :
- उत्तर-पूर्व कहां जा चुका है कि मूर्ति का कला की दृष्टि से : बड़ा महत्त्व-पूर्ण स्थान है। तथा ऐतिहासिक दृष्टि से यदि उसको देखा जाए तो उस से बड़ा लाभ होता है, किन्तु उसको वंदन . करना या उसकी पूजा करना किसी तरह भी ठीक नहीं है। मति ।
भगवान् महावीर की हो, प्राचार्य श्री, उपाध्याय श्री, गुरुदेव श्री या - अन्य किसी मनिराज की, कोई भी मूर्ति क्यों न हो, किसी को भी
हाथ नहीं जोड़ना चाहिए। जड़ के पागे, चेतनदेव को मकाने की भूल - कभी नहीं करनी चाहिए।
.. . .....रही वात, मूर्ति लगाने की, इसके सम्बंध में इतना ही कहना .. -. . है कि यदि कोई व्यक्ति परिचय के लिए घरों या दुकानों में चित्र
.' लगाता है। यह हमारे भगवान् महावीर की प्रतिच्छाया है, हमारे - ग्राचार्य भगवान का शारीरिक आकार ऐसा है, या था इत्यादि बातों की
जानकारी करने या कराने के लिए चित्रों का प्रयोग करता है और हाथ नहीं जोड़ता, धूप नहीं जलाता, उस का पूजन या स्तवन नहीं करता तो सैद्धान्तिक दृष्टि से चित्रों के लगाने में कोई दोप नहीं है। स्थानकवासी परम्परा का विरोध मूर्ति से नहीं है बल्कि मूर्तिपूजा
... प्रश्न-देवी अथवा देवताओं की मूर्तियों या मढ़ी-मसानी
आदि की पूजा व प्रतिष्ठा के सम्बंध में स्थानकवासी परम्परा