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प्रश्नों के उत्तर.
उत्तरासंग करना । ४ मुनिराज को देखते ही हाथ जोड़ना । ५. मन को एकाग्र करना । :
'जो लोग मन्दिर में भगवान की प्रतिमा पर पुष्प चढ़ाते हैं, उनका ऐसा करना कहां तक शास्त्रीय है ? ज़रा सोचने का कष्ट : करें । जव श्रावक द्वारा मुनिराज के पास तभी जाया जा सकता है. जबकि वह सचित्तं द्रव्यों का सर्वथा परित्याग कर दे, ऐसी दशा में मन्दिर में भगवान के निमित्त पुष्प ले जाना कैसे उचित माना जा सकता है ?
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द्रव्य - पूजा में जड़मूर्तियों को नमस्कार किया जाता है, जड़ के आगे चेतन को झुकाया जाता है। जड़ के आगे चेतन का नतमस्तक होना किसी भी तरह संगत और उचित नहीं कहा जा सकता, क्योंकि नमस्कार शब्द का शाब्दिक अर्थ स्वयं इस बात का विरोध करता है । नमस्कार की व्याख्या करते हुए एक आचार्य कहते हैं
मत्तस्त्वमुत्कृष्टः त्वत्तोऽहमपकृष्टः, एतद्द्वयवोधनानुकूलव्यापारो हि नमः शद्वार्थः । अर्थात् मेरे से आप उत्कृष्ट है, गुणों में बड़े हैं और मैं आपसे अपकृष्ट हूं, गुणों में हीन हूं, इन दोनों वातों का वोधक नमः शब्द है । तात्पर्य यह है कि नमस्कार करने वाला व्यक्ति जिस को नमस्कार करता है, वह नमस्कार के द्वारा उस के चड़प्पन को अभिव्यक्त करता है । वह प्रकट करता है कि ग्राप मुझसे बड़े हैं और मैं ग्राप से छोटा हूं ।
लौकिक व्यवहार भो नमस्कार शब्द गत इस भावना का पोषक । पुत्र पिता को नमस्कार करता है, पिता पुत्र को नहीं । ऐसा क्यों है ? इसी लिए कि पिता का स्थान ऊंचा है और पुत्र का स्थान नीचा | शिष्य गुरु को प्रणाम करता है । वह भी इसी लिए कि शिष्य गुरु को अपने से उच्च मानता है, और स्वयं को उन से तुच्छ ग्रभिव्यक्त करता है । इस प्रकार उत्कृष्ठता तथा अपकृष्टता प्रकट