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________________ पन्द्रहवां अध्याय . ८३९ ..वर्ष को लघुवय में ही आपके माता पिता का निधन हो गया था। .... १० वर्ष की उम्र में दादी भी आपको निराधार छोड़ कर परलोक . . · सिधार गई। इस तरह आप ने बाल्यकाल में आराम के दिन नहीं .. .देखे। वैराग्य उक्त घटनाओं के वाद आचार्य प्रवर एक तरह से निराश- .. हताश से हो गए, उदासीन रहने लगे। घर में उन का मन नहीं लगता था, घर का समस्त वैभव उन्हें नागिन की तरह डसने लगा। वे ... . वहां से चल कर लुधियाना आए और वहां पर विराजमान श्रद्धेय. .. - पूज्य श्री जयराम दास जी म०, एवं स्वनामधन्य पूज्य श्री शालिग्राम . जी महाराज के दर्शनों से आप की आत्मा को कुछ शान्ति मिली और पूज्य श्री. के उपदेश से आप के मन में जो संसार से निराश-. हताश हो चुका था, वैराग्य की भावना जागी। वि० सं० १९५९. .. आषाढ़ शुक्ला ५ को वनड शहर में श्रद्धेय शालिग्राम जी म० के.. करकमलों से श्राप दीक्षित हुए। . शिक्षा-दीक्षा. श्रद्धेय आचार्य श्री मोती राम जी म० के सानिध्य में रह कर आपने मुनि जीवन की शिक्षा-दीक्षा पाई तथा उन से ही शास्त्रों का .. का गंभीर अध्ययन किया, आगममहोदधि का मन्थन किया। आप "का आगमज्ञान बड़ा ही विलक्षण और अपूर्व था। आप के गंभीर शास्त्रीय ज्ञान से ही प्रभावित हो कर वि० सं० १९६९ को फाल्गुण मास में आचार्य प्रवर श्री सोहन लाल जी महाराज ने अमृतसर : आप को उपाध्याय पद से विभूषित किया। ..:- आचार्य पद- .. . . .. ... .. ... .... . ...आप की उच्चता, महत्ता एवं लोकप्रियता प्रतिक्षण वढ़ती
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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