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________________ प्रश्नों के उत्तर ३९२ को बोध नहीं होने पाता । श्रतः शरीर में घ्राणशक्ति का भी अपना एक विशेष स्थान है । इस का नाश कर देना एक बहुत बड़ी रुक्षम्य भूल है । * चतुर्थ प्राण शक्ति का नाम रसना है । रसना के द्वारा भगवान का भजन, स्तवन किया जाता है, गुरुदेवों का गुणग्राम किया जाता है, भोजन, पानी यादि खाद्य और पेय पदार्थों के कटुक, कपाय श्रीर प्रम्ल आदि रसों का बोध भी रसना द्वारा ही प्राप्त किया जाता है । जीवन में रसना का कितना मूल्य होता है ? यह वही व्यक्ति जानता है, जो बोलना चाहता है, पर रसनेन्द्रिय की सदोपता के कारण बोल नहीं पाता, अपने विचारों को प्रकट करना चाहता हुआ भी प्रकट नहीं कर पाता। ऐसी महान शक्ति को जीवन से पृथक कर देना एक भीषण पाप है ! * स्पर्शनेन्द्रिय पांचवां प्राण है। पांच इन्द्रियों में यह सर्व प्रथम इन्द्रिय है। स्पर्शनेन्द्रिय के द्वारा उष्ण, शीत, स्निग्व, रूक्ष, कोमल श्रादि स्पर्शो का बोध होता है । यदि यह दुर्बल हो जाती है या अधरंग हो जाता है तो उष्ण, शीतादि स्पर्शो का व्यक्ति को ज्ञान नहीं होने पाता । स्पर्शन संबंधी सुख और दुःख की अनुभूति में स्पर्शनेन्द्रिय का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है । स्पर्शजन्य सुख-दुःख इसी के माध्यम से आत्मा को हो पाता है । ऐसे अनमोल घन का हरण करना बड़ा भारी, पाप है । छठी प्राण शक्ति का नाम मन है । जिसके द्वारा मनत किया जाए, चिन्तन किया जा सके उसे मन कहते हैं । जड, चेतन, पुण्य, पाप, - * श्रोत्र, चक्षु, नासिका, रसना और स्पर्शन इन पांचों प्राणशक्तियों की शास्त्रीयभाषा में पांच ज्ञानेन्द्रियां भी कहा जाता है ।
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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