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________________ प्रश्नों के उत्तर अर्थ में संस्कृत व्याकरण द्वारा अप्रत्यय लगा कर साम्वत्सर शब्द बनता है । वर्प के अनन्तर मनाए जाने वाले पर्व को साम्वत्सर पर्व कहते हैं। स्त्री लिंग में यही पर्व सम्वत्सरी कहलाता है । जैन संसार में यह पर्व सम्वत्सरी के नाम से ही प्रसिद्ध एवं प्रचलित है। वर्ष भर. में मनुष्य से जो भूलें हुई हों, त्रुटिएँ और अपराध बन पाये हों, उनका अन्वेषण, चिन्तन और उसके लिए पश्चात्ताप करना तथा अन्त में क्षमा याचना करके अपनी आत्मा को शुद्ध, निर्विकार तथा पवित्र वनाना ही इस पर्व का सर्वतोमुखी लक्ष्य रहता है। . वैसे क्षमायाचना की प्रेरणा जंतर शास्त्रों में भी पाई जाती है। अन्यशास्त्र भो क्षमा-आराधना की बात कहते हैं, किन्तु क्षमायाचना के माध्यम से की जा रही इस यात्म शुद्धि के परम सत्य को एक महापर्व के रूप में उपस्थित करके जैनाचार्यों ने मानव जगत पर भारी उपकार एवं अनुग्रह किया है। मनुष्य जाति सदा के लिए इन महापुरुषों की ऋणी रहेगी। इस पर्व का केवल आध्यात्मिक ही महत्त्व नहीं है । यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो यह पर्व आर्थिक दृष्टि से भी समाज और राष्ट्र के लिए बड़ा लाभप्रद है । इस की आराधना से राष्ट्र का बहुत सा धन - जो राष्ट्र की व्यवस्था करने के लिए उपयोग में आता है वच सकता = है। सरकार जब बजट बनाती है तो सव से पहले सेना, फिर पुलिस . .. और फिर अदालत का ध्यान रखती है। जब तालीम और हॉस्पिटल - ... की बात आती है तो कहा जाता है कि पैसे नहीं हैं। यदि लोग . . सम्वत्सरी के संदेश अर्थात् क्षमा को अपना लें, शान्ति के पुजारी हो : .. . संवत्सरात् पर्व-फले ।।१।१७७१ सम्वत्सरशब्दात् पर्वणि च फले । चाण भवति । सांवत्सरं फलं पर्व वा अन्यत्र साम्वत्सरिको रोगः। इतिशाकटायनम्। . सम्वत्सराफल पर्वणो:। साम्बत्सरं फलं पर्व वा । साम्वत्सरिकमन्यत् । (सिद्धान्त कौमुदी) . मा
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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