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________________ ८१८ प्रश्नों के उत्तर .... . निर्माण की कुछ अलौकिक सामग्री जटाने की आदर्श प्रेरणा प्रदान करता है। यह सत्य है कि लौकिक पवों में सांसारिक आमोद-प्रमोद की वर्षा होती है किन्तु अलौकिक पों में इससे सर्वथा विपरीत होता है । वहां आध्यात्मिकता के नेतृत्व में सभी प्रवृत्तियां चलती हैं, अन्तरंग ... जीवन की उन्नति और प्रगति ही उनका प्रमुख उद्देश्य रहता है, .. अन्याय, अत्याचार एवं अनैतिकता के पतझड़ से शुष्क और नीरस . हुए जीवन-तरु को सत्य, अहिंसा के पावन जल से सींचना पड़ता है। तपस्या की भट्ठी में कर्मों के ईन्धन की भस्म बनाई जाती है। . जैनेन्द्र वाणी की छाया तले बैठ कर प्रात्मज्योति जगाने के लिए मानसिक दुर्बलता, स्वार्थ-परायणता तथा अस्मिता के दुर्भावों का . बहिष्कार करना पड़ता है। इसके अलावा अलौकिक पर्व में* सत्त्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोद, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम् । .. - माध्यस्थ्य-भावं विपरीतवृत्तौ, .. __ सदा ममात्मा विदधातु देव।।। ...... की पावन तथा मधुर झंकार से अन्तर्वीणा झंकृत हो उठती . है। जीवन के महाकाश पर आत्मदेव के महासूर्य को जो मोहवासना का केतु ग्रस रहा है उससे यात्मदेव को मुक्त कराना होता है। ऐसी अन्य अनेकों विशेषताओं के कारण ही अलौकिक पर्व पर्वजगत में... वड़ा ऊँचा और आदर्श स्थान रखते हैं। अक्षय तृतीया, महापर्व . . * हे जिनेन्द्रदेव ! मैं चाहता हूं कि यह मेरी आत्मा सदैव प्राणी मात्र के प्रति मित्रता का माव, गुणी जनों के प्रति प्रमोद का भाव, दुःखी जीवों के प्रति करुणा .. का भाव और धर्म से विपरीत आचरण करने वाले अधर्मी तथा विरोधी जीवों - के प्रति. रागद्वेष से रहित उदासीनता का भाव धारण करे ।
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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