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________________ . चतुर्दशः अध्याय ८१३ है। इन का विश्वास है कि पानी के मटके में राख डालने से सारा पानी अचित्त हो जाता है। तेरहपन्थी गृहस्थ लोग अपने घरों में रखे. कई मटकों, में राख डाल लेते हैं । इस से वह पानी अचित्त मान • लिया जाता है और तेरहपन्थी साधु उस पानी को ले जाते हैं। इनके यहां यह परम्परा भी है कि जो पानी एक बार अचित्त हो जाता है, वह सदा-सर्वदा के लिए अचित्त मान लिया जाता है। . स्थानकवासी साधु बीमार आदि किसी विशेष कारण के .. . बिना किसी साध्वी से आहार-पानी मंगाने या प्रतिलेखना आदि की सेवा नहीं करवाते । किन्तु तेरहपन्थी साधु विना किसी कारण - के साध्वी द्वारा लायां हुआ आहार-पानी ग्रहण करते हैं। उन से - वस्त्रों की प्रतिलेखना भी करवाते हैं। तेरह-पन्थ के आचार्यः श्री की सेवा के लिए तो अमुक सतियां विशेष रूप से नियुक्त रहती हैं, जिन्हें राजसती आदि नामों से संबोधित किया जाता है। ये .. सतियां प्राचार्य श्री को भोजन परोसती हैं, उनका बिछौना तैयार'. . करती हैं, उनके वस्त्रों का प्रतिलेखन करती हैं। ............. . . स्थानकवासी साधु गृहस्थों की किसी सभा, सोसायटी, सम्मेलन आदि के सभापति नहीं बनते और न सभा आदि का संचालन करते हैं। किन्तु तेरहपन्थी साधु गृहस्थों की संभाओं के सभापति वनते हैं। कभी विचार-परिषद् के कभी कवि-सम्मेलन के और कभो महिमा-सम्मेलन के सभापति बनते हैं । अणुव्रती संघ के सभापति-संचालक आचार्य श्री तुलसी स्वयं हैं । गृहस्थों के संघ का साधिकार संचालन करने की पूर्ण सत्ता आचार्य श्री तुलसी ने अपने हाथों में ले रखी है। किसी भी सदस्य को भरती करने या बरखास्त करने की पूर्ण सत्ता आचार्य श्री तुलसी के पास है। ...
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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