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________________ चतुर्दश अध्याय की सहायता करना पाप क्यों होगा ? करने का उपदेश दिया विरत हो जाएगा । तोः चुकाने में बाधा नहीं + दूसरी बात, यदि कसाई को हिंसा न जाएगा और उस से कसाई उस हिंसा से क्या उस दशा में भी बकरे के कर्म - ऋरण आएगी ? यदि कर्म - ऋण चुकाते हुए को अन्तराय देना पाप है इस सिद्धान्त को मान लिया जाएगा तो चाहे बंकरे को बचाया जाए या चाहे कसाई को उसे मारने से रोका जाए, दोनों ग्रवस्थानों में पाप तो लगेगा ही । क्योंकि दोनों अवस्थाओं में बकराबच जाएगा । अतः इस सिद्धान्त को मान कर न बकरे को बचाने: की बात कही जा सकती है और न कसाई को हिंसा से विरत होने का उपदेश दिया जा सकता है । • ७८३ तेरहपन्थ का - "मरते हुए की रक्षा करने से, दीन दुःखी की सहायता करने से उसका चुकता हुआ कर्म - ऋण चुकना रुक जाता है । इसलिए मारे जाते हुए जीव को बचाना या दुःखी की सहायता करना पाप है ।' यह सिद्धान्त मान लिया जाए तो यह भी मानना पड़ेगा कि आर्तध्यान और रौद्रध्यान से कर्म का बंध नहीं होता है, उससे कर्म-निर्जरा होती है । तो जो किसी जीव को मार रहा है उस को भी हिंसा न करने का उपदेश नहीं देना होगा तथा जिस सुपात्र दान को धर्म का कारण कहते हैं उसे पाप का साधन मानना पड़ेगा । यदि तेरहपन्थी इन बातों को नहीं मानते तो मानना होगा कि उनका उक्त सिद्धान्त केवल दया और दान का घातक हैं, तथा वह सर्वथा त्याज्य एवं हेय हैं । " तेरहपन्थ का तीसरा सिद्धान्त है कि साधु के सिवाय संसार के सभी प्राणी कुपात्र हैं । कुपात्र को बचाना, दान देकर उसे सन्तु - ष्ट करना या कष्ट से मुक्त करना, तथा उसकी सेवा सुश्रूषा करना
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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