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________________ ৩s৪ प्रश्नों के उत्तर 1 आदि जीवों को हिंसा खुद करते हैं । उदाहरणार्थ-तेरहपन्थी साधु प्रति-दिन वस्त्र, पात्र यादि उपकरण की प्रतिलेखना करते हैं । यह क्यों ? इसीलिए कि वस्त्र पात्रादि की प्रतिलेखना करके उस में रहे हुए द्वीन्द्रिय ग्रादि त्रस जीवों को बचाया जा सके । यदि त्रसकायिक जीवों की रक्षा करना उद्देश्य न हो तो फिर प्रति-लेखना ही क्यों की जाती है ? इसके अलावा, जैनदर्शन के अनुसार हाथ पैर के हिलने - चलने से असंख्य वायुकायिक जीवों की हिंसा हो जाती है । वस्तुतः प्रति लेखना करते समय श्रसंख्य वायुकाविक जीवों की हिंसा सर्वथा संभव है। इस तरह प्रति लेखना द्वारा थोड़े से त्रस जीवों को बचाने के लिए असंख्य वायुकायिक जीवों की हिंसा हो जाती है । यदि तेरहपन्थी साधु कहें कि प्रतिलेखना करने का उद्देश्य हमारा त्रसकायिक जीवों को बचाना नहीं है । किन्तु हम ने अपने-आप को वस्त्र, पात्र या शरीर द्वारा होने वाली हिंसा से बचाना है। बहुत ठीक, त्रस जीत्रों की हिंसा से बचने के लिए ही सही । परन्तु वायुकायिक जोवों की हिंसा तो हो ही गई । चाहे त्रस जीवों को बचाने का उद्देश्य नहीं है पर उनको रक्षा तो हो ही. जाती है । असंख्य वायुकायिक जीवों की हिंसा करने पर ही ग्रांप 'थोड़े से सजीवों की हिंसा से अपने को बचा सके हैं: न ? फिर एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव वरावर कैसे रहे ? 1 दूसरी युक्ति लीजिए। तेरहपन्थी साधु एक जगह से दूसरी 'जगह जाते हैं, तब यदि मार्ग में नंदी आती हो तो उस नदी को पार करते हैं । यदि नदी से नाव लगती है तो नाव के द्वारा, यदि नांव न लगती हो तथा पानी यदि घुटनों से नीचे है तो पानी में उतर कर नदी पार करते हैं । चाहें नाव में बैठ कर नदी पार करें या पानी में उतर कर, दोनों अवस्थाओं में अप्कायिक जीवों की हिंसा
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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