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________________ ७६८ प्रश्नों के उत्तर आदेश दे गए कि इन बच्चों का ध्यान रखना । कुतिया यहाँ नहीं है । ऐसा न हो कि कोई दूसरा कुत्ता इनको हानि पहुंचाए। तुम ने सतर्क रहना, सावधानी के इनका ध्यान रखना । गुरुदेव यह कह कर चले गए पर भीपरण जी तो भीषण ही ठहरे । उन्होंने गुरु के प्रदेश की तनिक परवाह नह की और उधर ग्रकस्मात् किसी कु तिया ने उन बच्चों को समाप्त कर दिया। शौच से निवृत्त होकर जब पूज्य गुरुदेव वापिस आए और उन्होंने कुतिया के उन बच्चों को मरे हुए पाया तो उन की अन्तरात्मा मारे वेदना के सिंहर उठी। उन्होंने भीषण जी से कहा-भोपण ! बाहर जाते समय मैंने तुम्हें इन बच्चों का ध्यान रखने को कहा था, किन्तु तुम ने इनका कोई ध्यान नहीं रखा। चाहिए तो यह था कि भीषण जी अपनी असावधानी के लिए अपने गुरुदेव से क्षमा मांगते, किन्तु उलटा वे गुरु को ही समझाने लगे । बोले-हम साधु सन्तों को इस से क्या ? हमारी बला से कोई मरे या जोए । साधु बन कर भी यदि इन्हीं प्रपंचों में पड़े रहे तो साधु बनने की क्या ग्रावश्यकता है ? शिप्यः के संभावित उत्तर से गुरुदेव के ग्राश्चर्य की सीमा न रही। शिष्य की इस निर्दयता पर गुरुदेव को मार्मिक वेदना भी हुई। तथापि उन्होंने सप्रेम कहा- भीषण ! साधु दया का स्रोत होता है, उस के करण—करण से करुणा और परहित की भावना का स्रोत स्रवित रहता है | "दया विन सिद्ध कसाई" की उक्ति दया की ही महिमा प्रकट कर रही है। स्वयं भगवान महावीर की वाणी x समस्त जीवों की रक्षा की ही महाप्रेरणा लेकर मानव जगत के सामने . -xसव्व जग - जीव-र - रक्खण-दमट्टयाए, पावयणं भगवया सुकहियं । - आचारांगसूत्र
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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