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________________ प्रश्नों के उत्तर होती है वैसे ही पुरुष को स्त्री के साथ रमण करने की जो इच्छा होती है, वह पुरुष वेद है । जैसे पित्त और कफ के प्रभाव से मद्यपदार्थों के प्रति रुचि होती है, उसी तरह नपुंसक को स्त्री और पुरुष दोनों के साथ रमण करने की जो अभिलाषा होती है, उसे नपुंसक वेद कहते हैं । वेद का प्रभाव वेद होता है । वेद जिस में होता है, उसे श्रवेदी कहते हैं । मुक्ति की प्राप्ति के लिए वेद. का परित्याग करना पड़ता है । वेद का परित्याग चाहे नारी करे; चाहे नर करे, प्रत्येक चवेदी जीवन मुक्ति का अधिकारी होता है । वेद का सर्वथा प्रभाव ही मुक्ति का सोपान है । वस्त्रों का या चोले का उससे कोई सम्बन्ध नहीं है । 07 साधु की सामुदानिक गोचरी परिचायक है जो भिक्षा विना भेदभाव के सभी सामुदानिक शब्द उस भिक्षा का मधुकरी वृत्ति द्वारा प्राप्त को जाती है, घरों से ली जाती है । तथा जिस में धनी, निर्धन या ग्रुपने और पराए का कोई भेद नहीं रखा जाता । निर्धन हो या धनी, सम्बन्धी हो या सम्बन्धी, सामान्य हो या विशेष, परिचित हो या अपरि-चित सभी घरों से प्राप्त की जाने वालो निर्दोष भिक्षा का नाम सामुदानिक भिक्षा है। जिस प्रकार भ्रमर यह प्रतिबन्ध नहीं रखता कि मैं अमुक पुष्पवाटिका से या अमुक पुप्प से ही रस लुगा किन्तु वह सर्वत्र सभी पुष्पों से थोड़ा-थोड़ा रस लेता रहता है, ऐसे ही सामुदानिक भिक्षा द्वारा जीवन-निर्वाह करने वाला भिक्षु भी ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं रखता कि मैं अमुक व्यक्ति के ही घर से या अमुक व्यक्ति से ही या अमुक प्रकार का ही श्राहार ग्रहण करूंगा । प्रत्युत अपने स्थान से निकलकर जिधर को वह भिक्षार्थ चल देता •
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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