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________________ ...३८५ ... 'दशम अध्याय :... minn आरम्भ-हिंसा होती है। गृहस्थ का जीवन पूर्णतः हिंसा से मुक्त नहीं " होता है। गृहस्थ के दायित्व को निभाने के लिए थोड़ी-बहुत हिंसा हो .. . ही जाती है। परन्तु हिंसा-हिंसा में भी अन्तर है। आगार धर्म, . प्रकरण में यह स्पष्ट कर दिया है कि श्रावक-गृहस्थ एकेन्द्रिय जीवों ... ' की हिंसा का पूरा त्याग नहीं कर सकता । वह निरपराधी त्रस जीवों . . को जान-बूझ कर, निरपेक्ष बुद्धि से मारने का त्याग करता है और . एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा की मर्यादा करता है । कारण यह है कि वनस्पति-पानी आदि के जीवों की चेतना अव्यक्त है और पशु-पक्षी.. की चेतना व्यक्त है । जव पशु-पक्षी पर छुरी, तलवार या गोलों से प्रहार करते हैं तो वह उस समय उस संकट से बचने के लिए हर संभव प्रयत्न करता है और वधिक उसे मारने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देता है। जव कभी वह छट-पटा कर बचने को कोशिश करता है तो वधिक का आवेश तीव्र, तीव्रतर और तीव्रतम होता ___ जाता है, उसकी आंखों से आग बरसने लगती है । इस तरह पशु-पक्षी : .. का वध करते समय क्रोध, आवेश एवं क्रूरता स्पष्ट दिखाई देती है, . परन्तु अन्न एवं सब्जी का इस्तेमाल करते समय मन में क्रूर भावना . नहीं होती। यही कारण है कि पशु-पक्षो की हिंसा सब्जी को हिंसा ... की अपेक्षा बड़ी है और प्रगाढ़ पाप-बन्ध का कारण है। वस्तुतः देखा . - जाए तो बन्ध की प्रगाढ़ता एवं हल्केपन का कारण क्रिया के साथ हो . . रही कषायों की तीव्र एवं मन्द परिणति है । यदि परिणामों में शुद्धता है, क्रोध, मान, माया और लोभ की भावना न्यून है, तो बन्ध भी ... . साधारण-सा होगा और कषायों की तीव्रता है तो बन्ध भी उतना ही... ... गहरा होगा। कषायें एक तरह से रंग हैं, अतः रंग जितना गहरा होगा वस्त्र उतना ही अधिक गहरा रंगा जायगा और रंग हल्का होगा ... तो वस्त्र पर भी उसी रंग की झलक-सी ही पायगी। इसी तरह कंषा 11. . .
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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