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________________ प्रश्नों के उत्तर इन १६ बातों को लेकर स्थानकवासी परम्परा और दिगम्बर परम्परा में गंभीर मतभेद चलता है। स्थानकवासी परम्परा इन बातों को स्वीकार करती है और दिगम्बर परम्परा इन को मानने से इनकार करती है। अग्रिम पंक्तियों में इन्हीं मतभेदों का संक्ष ेप में परिचय कराया जायगा । ७२८ केवली का कवलाहार 3: दिगम्बर परम्परा का विश्वास है कि केवली को भूख प्यास वेदना नहीं होती, किन्तु स्थानकवासी परम्परा उसे स्वीकार करती । उसने कर्म सिद्धान्त के अनुसार यह सिद्ध किया है कि केवली को भी भूख, प्यास लगती है । स्थानकवासी परम्परा का विश्वास है कि केवली के वेदनीय, नाम, गोत्र और आयुष् ये चार अघातिक कर्म अभी शेष होते हैं । ग्रतः वेदनीय कर्म के उदय कारण, क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, शय्या, वध, रोग, तृरणस्पर्श x भूख और प्यास की चाहे कैसी भी वेदना हो, फिर भी साधु-मर्यादा के विरुद्ध श्राहार पानी न लेना तथा समभावपूर्वक इन वेदनाओं को सहन करना क्रमशः क्षुधा और पिपासा परीपह है। ठण्ड और गरमी से चाहे कितना ही कष्ट होता हो तो भी उसके निवारणार्थं किसी भी अकल्पनीय 'वस्तु का सेवन न करके समभावपूर्वक इन वेदनाओं को सहन करना क्रमश: शीत और उष्ण परोषह है । डाँस, मच्छर आदि जन्तुनों का उपद्रव होने पर खिन्न न होते हुए उसे समभावपूर्वक सहन कर लेना दंशमशक परीषह है। धर्म- जीवन को पुष्ट करने के लिए प्रसंग होकर भिन्न-भिन्न स्थानों पर विहार करना और किसी भी एक स्थान पर बिना कारण नियतवास स्वीकार न करना चर्या-परीषह है । कोमल या कठिन, ऊंची या नौघी 'जैसी भी सहज भाव से मिले वैसी जगह में समभावपूर्वक शयन करना शय्या ★ +
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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