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________________ प्रश्नों के उत्तर ज्ञानं तीर्थ धृतिस्तीर्थ, तपस्तीर्थमुदाहृतम् ।। तीर्थानामपि तत्तीर्थ, विशुद्धिर्मनसः परा ॥ ३ ॥ अर्थात्-सत्य, क्षमा, इन्द्रिय-दमन, जीवदया, सरलता, दान दम, सन्तोष, ब्रह्मचर्य, प्रियवादिता, ज्ञान, धृति और तपस्या ये सब तीर्थ हैं । तथा इन सब तीर्थों में श्रेष्ठ तीर्थ हैं.--मन की शुद्धिं । . . यहां मन की शुद्धिं ही मुख्य तीर्थ माना गया है । स्थानकवासी परम्परा भी मन की शुद्धि को ही, आत्मविकारों की उपशान्ति को ही तीर्थ के रूप में स्वीकार करती है। पर्वत या पर्वतगुफा आदि स्थान उस की मान्यता में तीर्थ नहीं होते। . ... पंचम अन्तर है, रात्रि को पानी रखने का । श्वेताम्बर मूतिपूजक परम्परा के साधु रात्रि को पानी रखते हैं। और कहते हैं कि दिशा या पेशाब जा कर शुद्धि करने के लिए रात्रि में जल रखना . ... अंत्यावश्यक है किन्तु स्थानकवासी परम्परा के साधु-रात्रि में जलं . रखने में रात्रि-भोजन-विरमरण-व्रत का भंग मानते हैं और इस व्रत.. भंग को साधु-जीवन का एक महान दोष समझते हैं। शौच के अनन्तर . शुद्धि करने की बात तो ये भी स्वीकार करते हैं किन्तु उनका कहना है । कि इतना अधिक भोजन या अमर्यादित भोजन ही क्यों किया जाए ? । जिससे रात्रि को शौचार्थ भागना पड़े। साधु को सदा परिमित और मर्यादित भोजन करना चाहिए। यदि परिमित और आवश्यकतानुसार नियमितः ही: भोजन किया जाए तो असमय में शौच जाने । का अवसर प्रा. ही नहीं सकता। असमय में शौच की आशंका . उसी व्यक्ति को रहा करती है, जिस का भोजन व्यवस्थित और नियमित नहीं होता। यह सत्य है कि किसी शारीरिक विकार के कारण असमय में,
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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