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________________ प्रश्नों के उत्तर और उसमें कोई सचाई नहीं है.। .. . . . . . . . . . धर्मप्राण लौकाशाह की उक्त विचारणा दिन प्रतिदिन परिपक्व और परिपुष्ट होती गई । अन्त में, उन्होंने तात्कालिक शिथिलाचार तथा मूर्ति-पूजा की अशास्त्रीय मान्यता को समाप्त करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। निश्चय के अनुसार उन्होंने अन्धकार का ... नाश करने के लिए अपना तन, मन और धन लगा दिया। परिरणाम यह हुआ कि सफलता उनके चरण चूमने लगी, मूर्ति-पूजा : या चैत्य-पूजा के विरोध में समाज में नवक्रांति की एक लहर पैदा . कर दी तथा कुछ ही दिनों में 'लखमशी शाह (उस युग के सुप्रसिद्ध श्रावक) जैसे हज़ारों महामान्य श्रेष्ठिवर भी इन से ज्ञान प्राप्त कर ... के लिए इन के साथ मिल गए। ४५ श्रावक तो इनके उपदेशों से इत ने प्रभावित हुए कि वे दीक्षित होने को तैयार हो गए। उन का ... मानस वैराग्यसरोवर में गोते लगाने लगा । अन्त में, भगवान महा.. : वीर के ६१ वें पट्टधर प्राचार्यदेव श्री ज्ञान ऋषि जी महाराज के चरणों में इन ४५ महानुभावों ने साधु-धर्म अंगीकार किया। इन के इस. धार्मिक उत्साह का सर्वोपरि श्रेय वस्तुतः धर्मप्राण .. ....... लौंकाशाह को ही है । इन्हीं के सदुपदेशों से प्रेरित होकर ये साधु.... धर्म के महान असिधारावत को ग्रहण करने में सफल हो सके थे। ... वीर लौंकाशाह ने स्थानकवासी परम्परा की इस प्रकार जो महान सेवा की, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता । स्यानकवासी समाज .... ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ~~~~~ ~ . .इन पैंतालिस मुनियों ने अपने मार्गदर्शक और उपदेशक के प्रति . . श्रद्धा व्यक्त करने के लिए अपने संघ का नाम “लौंकागच्छ” रखा और . अपने प्राचार-विचार और नियम लौंकाशाह के उपदेश के अनुसार बनाए। . -कान्फरंस का स्वर्णजमन्ती ग्रन्थ, पृष्ट ४०.....
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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