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प्रश्नों
के उत्तर.. .
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महामहिम मुनिराज श्री स्थूलिभद्र जी ने बड़ी. दक्षता के साथ । उक्त सम्मेलन का संचालन किया और जिन-जिन मुनियों को जोजो आगम-पाठ स्मृति में थे, उन सब का संकलन करा दिया गया, किन्तु पूर्वो के ज्ञान में अत्यधिक ह्रास हो गया । इस ह्रास को दूर
करने के लिए आचार्यवर्य श्री भद्रबाहु स्वामी की उपस्थिति याव- श्यक थी। उस समय प्राचार्यवर्य कर्णाटक देश की अोर विचर रहे .' : थे, अतः उन को बुलाने के लिए दो मुनिराजों को कर्णाटक देश. .
भेजने को व्यवस्था की,किन्तु प्राचार्य देव भद्रवाहु स्वामी उस समयx. एक विशिष्ट साधना में लगे हुए थे, अतः उन का पाना कठिन हो.
... श्री वाडीलाल मोतीलाल शाह की लिखी “ऐतिहासिक नोंध" में : उक्त प्रसंग को लेकर ऐसे लिखा है कि "मुनि अखीरी पूर्वधारी थे, इन के समय में अकाल पड़ने सें चतुर्विध संघ को बड़ा संकट हुअा। उस समय
पाटलीपुत्र शहर में श्रावकों का संघ इकट्ठा हुआ और सूत्रों के अध्ययन - आदि का निश्चय किया तो कुछ फेरफार जान पड़ा, ऐसा देखकर इन्होंने -
दो साधुओं को नेपाल देश में भद्रवाहु स्वामी को बुलाने भेजा, उन्होंने संयोगों का विचार कर १२ वर्ष बाद आने को कहा । बारह वर्ष का
अकाल पूरा हो जाने पर साधु इकट्ठहोकर सूत्रों को मिलाने लगे । ज्ञान ..का दिच्छेद होता. देख कर स्थूलिभद्रादि ५ साधुओं को भद्रबाहु स्वामी के
.. पास नेपाल भेजा,चार साधु तो हिम्मत हार गए किन्तु स्थूलिभद्र ने दस पूर्व .... ...... का अध्ययन किया,ग्यारहवें पूर्व का अभ्यास करते समय उन्हें विद्या प्राज़-.":..
माने की इच्छा हुई, इस से जब भद्र बाहु. स्वामी बाहिर गए, तब स्थूलिभद्रः .. सिंह का रूप बना कर उपाश्रय में बैठे । गुरु ने पीछे पाकर यह सब देखा। . इससे उन्हें विचार पाया कि अब ऐसा समय नहीं रहा कि.विद्या को कायम ... ' रख सके या पचा सके, और आगे पढ़ाना बन्द कर दिया. (पृष्ठ ५५-५६).