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________________ चतुदेश अध्याय ... ३-पूज्य श्री प्रभव स्वामी श्री जम्बू स्वामी के केवली बन जाने के अनन्तरं प्रभवः स्वामी उन के पाट पर विराजमान हुए। प्रभव जयपुर के राजा जयसेन के पुत्र थे । प्रजा को कष्ट दिया करते थे, इस कारण देश से निकाल दिए गए और फिर ये चोरों से जा मिले थे। चोरों के सरदार के मर जाने पर इनको चोरों का सरदार बना दिया गया। जम्बू कुमार के विवाह में दहेज रूप से मिले. ६६ करोड़ सुनयों को चुराने गए थे, परन्तु स्वयं ही चुराए गए। जम्बू कुमार की अध्यात्म विद्या ने इनकी, लोगों को सुला देने, तथा हाथ लगाते ही ताला .. खोल देने को,इन दो विद्याओं को निस्तेज बना दिया था। अन्त में, इन्होंने जम्बू स्वामी के चरणों में अपने को अर्पित कर दिया और इनके साथ ही ४६६ साथियों को संग लेकर दीक्षित हो गए । सत्य, क्षय हो जाने पर जो परिणाम-विशेष होता है, वह क्षायिक सम्यक्त्व है, . यह सादि अनन्त है, एक वार ही आती है, और आने के बाद कभी जाती . नहीं है । मति, श्रुत भादि ज्ञान की अपेक्षा विना, त्रिकाल एवं त्रिलोकवर्ती .. .. समस्त पदार्थों को युगपत् हस्तामलकवत् जानना केवल-ज्ञान कहलाता है। उत्कृष्ट चारित्र का पालन करने की इच्छा से निकले हुए साधु-विशेप जिनकल्पी कहे जाते हैं-इन के प्राचार को जिनकल्प स्थिति कहते हैं । जघन्य नवें पूर्व की तृतीय वस्तु और उत्कृष्ट कुछ कम दस पूर्व-धारी जिनकल्प: . अंगीकार करते हैं । वे वन-ऋषभनाराच संहनन के धारक होते हैं, अकेले. ... रहते हैं, उपसर्ग और रोगादि की वेदना, विना औपधादि का उपचार किए . . सहते हैं । उपाधि से रहित स्थान में रहते हैं, आदि इनके जीवन की चर्या होती है। परिहार-विशुद्धि चारित्र, सूक्ष्म-सम्पराय चारित्र और यथाख्यातं . : चारित्र का भावार्य पीछे पृष्ठ ६६७ पर लिखा जा चुका है। . . . : ..
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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