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________________ - चतुर्दश अध्याय ६५१ वाचक है जिन्होंने अध्यात्मवाद की खोज की, धार्मिक, क्रियाओं के आडम्बर युक्त आवरणों को हटा कर उन में अवस्थित अहिंसा; सत्य आदि का बुद्धि-शुद्ध शोधन किया । "वैदिकी हिंसा, हिंसा न . भवति'' कह कर जो लोग हिंसा को धर्म बतला रहे थे,तथा मन्दिरों में वीतराग भगवान की प्रतिमा बनाकर उसे सरागता. का चोला पहना कर उनकी वीतरागता को अपमानित एवं विडम्बित कर रहे थे, सर्वथा त्यागी और अहिंसक महापुरुषों की मूर्तियों के आगे सचित्त पुष्प तथा उनकी मालाएं: चढ़ाकर उन की अहिंसकता को तिरस्कृत कर रहे थे । उन लोगों को अहिंसा का सत्पथा दिखलाकर संसार में अहिंसा के मूल रूप : कोः जिन्होंने सर्वथा सुरक्षित रखा, उन लोगों को दण्डक पद से व्यवहृत किया जाता है। कितना विलक्षण और अपूर्व, भावों का परिचायक है इण्ढक शब्द ? इण्डक शब्द का रहस्य निम्नोक्त कविता की भाषा में कितनी सुन्दरता से व्यक्त किया गया है.-: :::.:..............: ढूण्ढत ढूण्डत दूण्ढ लियो संव, वेद पुराण किताब में जोई। जैसे दही में माखन दण्डत, ऐसे दया में लियो है जोई।।.. टूण्डत है तव ही वस्तु पावत, विन ढूण्ढे नहीं पावत कोई। ऐसे दया में धर्म है दण्ढयो, जीव दर्या बिन धर्म न हाई॥ प्रश्न-स्थानकवासी परम्परा प्राचीन है या अर्वाचीन ? यह परम्परा भगवान महावीर से सम्बन्धित है या इसका जन्म उनके अनन्तर हुआ है ? . ...... · : उत्तर-भगवान महावीर से पूर्व के तीर्थंकरों के युग में स्थानकवासी परम्परा किस रूप में थी ? और वह भगवान महावीर से कैसे सम्वन्धित रही ? इत्यादि प्रश्नों के उत्तर ऐतिहासिक सा- . ..:: : . . . .
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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