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________________ त्रयोदश अध्याय ध्याय फेंक दिया जाता था । अहिंसा के अग्रदूत भगवान महावीर ने यज्ञ-. वाद के इस किले को भी तोड़ा। और संसार को अहिंसा का संदेश .. देते हुए कहा था कि किसी के जीवन का नाश करना अनधिकार चेष्टा है, अन्याय है, अत्याचार है, हिंसा है । हिंसा कभी स्वर्गदायी नहीं हो सकती । अग्निकुण्ड में जैसे कमल पैदा नहीं हो सकते,वैसे ही हिंसा की आग जहां जल रही हो वहां सुख,शान्ति और प्रानन्द के पौधे भी नहीं लहलहा सकते हैं। हिंसा से स्वर्ग मिलता है, कितनी गल्त और विचित्र धारणा है यह ? बलिदान तो पशुओं . — का होता है, और स्वर्ग मारने वाले को मिलता है ! यह अन्रं ... नहीं तो और क्या है ? कहा जाता है कि यज्ञ करने से पशुओं का .. - उद्धार हो जाता है। यदि यज्ञ से.. पशुओं का उद्धार होता है तो - याज्ञिक लोग पहले अपना और अपने परिवार का ही उद्धार क्यों .. नहीं कर लेते ? वेचारे पशुओं को क्यों वलि चढ़ाते हैं ? उद्धार के चिन्तकों को सर्व-प्रथम अपना उद्धार करना चाहिए। विश्वास रखो, हिंसा आखिर हिंसा है। चाहे वह किसी भी उद्देश्य से की जाए और किसी भी धर्म-शास्त्र के नाम पर की जाए । जव हम ... में से किसी को दिया दुःख धर्म का रूप नहीं ले सकता तो पशुओं .. ' को दिया गया दुःख, सुख का कारण कैसे बन सकता है ? अतः .. हिंसा अधर्म है, पाप है और मानवता के सिए सब से बड़ा अभिशाप है। - इस प्रकार विश्वन्दय भगवान महावीर ने तात्कालिक सभी समस्याओं का समाधान किया, और राष्ट्र की काया पलट दी। सोई मानवता को जगा डाला, भारत का धार्मिक और सामाजिक स्तर उन्नत किया। भगवान महावीर का सान्निध्य पाकर मनुष्य ने .. .. मनुष्यता की पावन भूमिका पर रह कर "स्वयं जीमो और दूसरों को
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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