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________________ ...६२६ . प्रश्नों के उत्तर ने पिता को आश्वासन दिया और कहा कि आप घबराइए नहीं। मैं सब को समझा दूंगी। आप सब राजाओं के पास पृथक्-पृथक्दूत को भेज दीजिए, कहला दीजिए कि शाम को तुम मोहन* घर में चले पायो । मैं तुम्हें मल्लिकुमारी दे दूगा। राजा कुम्भ ने ऐसा ही किया। छहों राजा पृथक्-पृथक् द्वार से शाम को मोहन घर में आ गए। उस के बीच में स्थित सुवर्ण को पुतली को देखकर वे छहों राजा उसे साक्षात् मल्लिकुमारी समझ कर उस पर मोहित हो गए । उसी समय मल्लिकुमारी ने उस पुतली के ढक्कन को उघाड़ दिया, जिस में डाले हुएं अन्न की अत्यन्त दुर्गन्ध वाहिर निकली। उस दुर्गन्ध को न सह सकने के कारण वे छहों राजा- पराङ्गमुख होकर बैठ गए । इस अवसर को उपयुक्त समझकर .. मल्लिकुमारी ने उनको शरीर की अशुचिता बतलाते हुए धर्मोपदेश दिया। वे .. कहने लगे--- .... ........... . . . . . '. . . . यह शरीर रज़ और वीर्य जैसे घृणित पदार्थो के संयोग से . बना है। माता के गर्भ में अशुचि पदार्थों के आहार के द्वारा इस minimirmirmirmirmimmm... ........ *मल्लिकुमारी ने अवधिज्ञान से इस घटना-चक्र को पूर्व ही जान लिया था । अतः उसने पहले ही अशोक-वाटिका में अनेक स्तंभों वाला एक ... ___ - मोहन घर बनवा लिया था। उसके बीच में उसने अपने ही आकार की ... एक सोने की प्रतिमा बनवा ली थी। उस के मस्तक पर एक छिद्र रखा था, और उस पर एक कमलाकार ढक्कन लगा दिया । अपने भोजन में से वह ... एक ग्रास बचाकर प्रति-दिन उस में डाल देती और वापिस ढक्कन लगा . देती थी । भोजन के सड़ने से उस में से मृतक कलेवर से भी अत्यन्त अधिक दुर्गन्ध उठने लगी थी।
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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