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________________ ६०४ प्रश्नों के उत्तर की चरम दशा को प्राप्त एक मनुष्य मानता है, किन्तु वैदिक दर्शन उसे ईश्वरीय अवतार स्वीकार करता है। हां, तो इस से यह स्पष्ट हो जाता है कि तीर्थ कर उस समय हुमा करते हैं, जब समाज और राष्ट्र में अधर्म बढ़ जाता है, और धर्म की अत्यधिक न्यूनता हो .. जाती है, तथा पापाचार का दैत्य सर्वत्र कोहराम मचा देता है। प्रश्न-उत्सपिणो या अवसर्पिणी काल-चक्र के तीसरे और चौथे बारे में जो तीर्थकर होते हैं, उन सब में एक . ही आत्मा होती है या वे सब पृथक्-पृथक् होते हैं ? और उन की संख्या कितनी है ? उत्तर--प्रत्येक कालचक्र में जो तीर्थंकर होते हैं, वे सब के : सव पृथक्-पृथक होते हैं और सब को प्रात्मा भी पृथक्-पृथक् . होती है । जैन दर्शन ब्रह्मवादियों की तरह विश्व में एक ही प्रात्मा नहीं मानता है। जैन दृष्टि से यात्माएं अनन्त हैं, और उन में से जो आत्मा तीर्थंकर-पद-योग्य साधन-सामग्री जुटाती है, तीर्थकरत्त्व की भूमिका तैयार कर लेती है, वही आत्मा तीर्थकर वन पाती है। और प्रत्येक कालचक्र में भारत वर्ष क्षेत्र की दृष्टि से २४ तीर्थकर होते हैं, इस से कम ज्यादा नहीं। ... प्रश्न-प्रत्येक कालक्र में २४ ही तीर्थंकर क्यों होते हैं.? २३ या २५ क्यों नहीं होने पाते ? । , उत्तर-क्षेत्रविशेष को लेकर प्रत्येक कालचक्र में २४ ही तीर्थकर होते हैं, २३ या २५ नहीं हो सकते, ऐसा किसी शक्ति-विशेष. की __. “ोर से कोई प्रतिवन्ध नहीं लगा हुआ है । वस्तुस्थिति यह है कि . केवल-ज्ञानियों ने अपने ज्ञान में देखा कि अतीत के प्रत्येक काल-. ... चक्र में २४ तीर्थकर हुए हैं और भविष्य में भी २४.होंगे, इसलिए .
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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