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द्वादश अध्याय ... .
प्रश्न-मुखवस्त्रिका बांधने का विधान केवल साधु के लिए ही है या श्रावक (गृहस्थ) के लिए भी है ? ..
. उत्तर-इस बात को हम पहले स्पष्ट कर चुके हैं कि मुखवस्त्रिका का प्रयोजन भाषा की सावधता को रोकना है । साधु ने सदा के लिए सावध योग का त्याग कर रखा है, अतः उसे सदा मुखवस्त्रिका लगाए रखना चाहिए । परन्तु,गृहस्थ पूर्णतः सावध योग का त्यागी नहीं है । वह कुछ समय के लिए ही उसका त्याग करता है, कभी एक-दो या अधिक मुहूर्त के लिए या एक-दो दिन के लिए। उसकी इस क्रिया को सामायिक और पौषध के नाम से पहचाना जाता है । उक्त समय वह सावध योग का त्याग करता है, अतः . उस समय उसे अवश्य ही मुखवस्त्रिका बांधनी चाहिए । आवश्यकचूरिण में लिखा है कि विना मुखबस्त्रिका लगाए जो सामायिक या पौषध आदि करता है,उसे ११ सामायिक का प्रायश्चित्त आता है।
इस तरह पागम के पाठों से यह स्पष्ट हो जाता है कि जीवों की रक्षा के लिए मुखवस्त्रिका सदा वांवे रखना चाहिए । अन्यथा खुले मुंह साधक को भाषा की सदोपता से बचना. असम्भव है ।* . . रजोहरण- ...
प्रश्न-रजोहरण का क्या अर्थ है और यह किस उद्देश्य
मुहंणतगेण कणोट्ठिया, विणा बंधइ जे को वि सावए। ... - धम्मकिरिया य करंति, तस्स इक्कारससामाइयस्स णं पायच्छित्तं भवइ ।।
-आवश्यक चणि .; * मुखवस्त्रिका के सम्बन्ध में अधिक शास्त्रीय जानकारी के लिए१ 'शास्त्रार्थ नाभा, लेखक-शास्त्रार्थ-महारथी श्रद्धेय गणी श्री उदयचन्द . . जी म. और मुखवस्त्रिका-सिद्धि, लेखक-श्री रतनलाल जी डोसी, देखें। . .
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