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________________ ५७६ प्रश्नों के उत्तर .... कताओं को पूरा करने के लिए उसे कुछ साधन रखने ही होते हैं । इसलिए ग्रागम में साधु के लिए उपकरण रखने का विधान किया गया है । जिनकल्प - ग्रागमों में दो प्रकार के साधुयों का वर्णन मिलता है - १ जिनकल्प और २ स्थविर कल्प | जिनकल्प को स्वीकार करने वाले साधु मुनिराज कम से कम नौवें पूर्व के तीसरे ग्रायारवत्थु नामक अध्ययन तक के ज्ञाता होते थे, वे पहाड़ की गुफाओं में या जंगल के वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ होकर ग्रात्म साधना में तल्लीन रहते थे, वे निर्भय और निर्द्वन्द्व होकर विचरण करते थे । यदि कभी मार्ग में सिंह भी मिल जाता तब भी भयभीत होकर मार्ग नहीं त्यागते थे । वे अपने शरीर की जरा भी सार-संभाल नहीं करते थे, यदि ग्रांख में तृरणं पड़ गया है, पैर में कांटा चुभ गया है, तो उसे भी कभी नहीं निकालते थे । वे न किसी भी साधु की सेवा करते थे और न दूसरे साधु से स्वयं अपनी सेवा करवाते थे । वे न कभी किसी को उपदेश देते थे और न शिष्य ही बनाते थे । वे सदा शहर से बाहर जंगल में ही रहते थे, मात्र भिक्षा लेने के लिए शहर या गांव में आते थे । जिनकल्पी मुनि के भी उपकरण रखने का विधान है। रजोहरण और मुखवस्त्रिका ये दो उपकरण तो उन्हें हर हालत में रखने होते हैं । क्योंकि दोनों जीव रक्षा के साधन हैं । इसके अतिरिक्त, यदि वे लज्जा पर विजय :: नहीं पा सके हैं, तो शहर या गांव में जाते समय दो हाथ का छोटा-सा वस्त्र लपेट कर जा सकते हैं, परन्तु भिक्षा से लौटते ही -. उसे उतार कर एक तरफ रख देते हैं । उसका उपयोग मात्र लज्जानिवारण के लिए ही कर सकते हैं, न कि शीत निवारणार्थं भी । इसी तरह यदि उनके हाथ की अंगुलियां में छेद पड़ते हों औौर -". ",
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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