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________________ m प्रश्नों के उत्तर करुण एवं वेदना भरे स्वर में गृहस्थ की दया एवं करुण भावना को. जगा कर उससे कुछ पाने का प्रयत्न करता है । परन्तु साधु ऐसा नहीं करता और न उसे देख कर श्रद्धालु व्यक्ति के मन में करुणा एवं हीनता की भावना उवुद्ध होती है। उसकी सन्तोष एवं त्यागेनिष्ठ वृत्ति को देख कर सद्गृहस्य के मन में श्रद्धा-भक्ति को भावना .. जगती है और वह उन के. पात्र में कुछ देकर असीम आनन्द को अनु... भूति करता है । अत: जैन साधु भीखमंगों को श्रेणी में नहीं आते। उन की साधना दुनिया के सभी मजहब के साधु-सन्यासी एवं फकोरों . से विलक्षण है और सभी लोग इस बात को मानते हैं कि वर्तमान. के . गए-गुजरे जमाने में भी जैन साधु जितना त्याग-तप, किसी पहुंचे हुए योगी में भी कम ही दिखाई देता है। उसको साधना अपने हो हित के लिए नहीं, बल्कि जगत के कल्याण के लिए भी है। उसका पेट भेष की समस्या का हल करने के लिए नहीं बल्कि अध्यात्म साधना के . शिखर पर चढ़ने के लिए हैं और यही कारण है कि उसकी भिक्षा वृत्ति सब से निरालो है । मांग कर लाने पर भी वह किसी के लिए : बोझरूप नहीं है। क्योंकि उसके मन में किसी तरह की इच्छा. प्राकांक्षा एवं चाह नहीं है। .. ... ..... : .. भिक्षा और भीख के अन्तर को स्पष्ट करते हुए जैनाचार्यों ने भिक्षा के तीन प्रकार बताए हैं-१-सर्व सम्मतकरी, २-पौरुपनो, ३ वृत्तिभिक्षा । सर्व सम्मत करो भिक्षा योग-निष्ठ साधु-सन्तों की है। -... साधु वह है, जो सदा-सर्वदा स्त्र साधना के साथ पर-हित में संलग्न : रहता है, संसार के कल्याण को सुखद एवं मंगल-कामना करता है। . विश्व को कल्याग का सही रास्ता बताता है। इसलिए उसको सावना : अपने लिए ही नहीं, प्राणी जगत के लिए भी सुखकर होती है ।
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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