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________________ . mami ....... प्रश्नों के उत्तर .५५० परिणाम हितकर हो, उससे कर्मबन्ध नहीं होता। जैसे डाक्टर शल्यः - चिकित्सा करता है, चिकित्सा में रोगी को वेदना भी होती है, किन्तु डाक्टर की भावना शुद्ध होने से और उसका फल हितंप्रद होने से .. डाक्टर पाप का भागी नहीं बनता। ऐसे ही लोच का परिणाम हिता- : वह और आत्मशुद्धि तथा सहिष्णु आदि प्रात्मगुणों का सम्वर्धक होने से लोच पारितापनिकी क्रिया का कारण नही बन सकती। - केश लोच जैसी कठिनतम साधता को देख कर सामान्य व्यक्ति कई बार पाकुल-व्याकुल हो जाते हैं किन्तु यदि गम्भीरता से विचार . किया जाए तो यह मानना पड़ेगा कि लोच जैन साधु का भूपण है। .. इस भूषण से विभूपित होने के कारण ही आज जैन साधु का जैन और । प्रजैन सभी विचारक संमान करते हैं। संसार के सभी साधु आचारगत-शिथिलता के कारण आज अपना सम्मान समाप्त करते जा रहे हैं। केवल एक जैन साधु ऐसा साधु है जो केशलोत्र और अखण्ड ब्रह्मचर्य, : . जैसी विलक्षण साधनाओं के कारण आज भी गौरवास्पद बना हुआ है. : .और उसे सर्वत्र आदर से देखा जाता है। जैन दर्शन से भले ही कोई . विरोध रखता हो पर जैन साधु की साधना के आगे सब को नत--- मस्तक होना पड़ता है। जैन साधु की कठोर साधुवृत्ति का आज भी लोग मान करते हैं और उसके आदर्श:तप, त्याग का लोहा मानते हैं। प्रतः केशलोच जैसी अध्यात्म साधना से भयभीत नहीं होना चाहिए। अध्यात्म जगत में इसका एक विशिष्ट स्थान है, इसे हिंसा समझने की भूल नहीं करनी चाहिए . ..... .. .... सत्य. ... - सत्य का अर्थ है- वस्तु के यथार्थ रूप को प्रकट करना अथवा - ऐसी वाणी या भाषा का प्रयोग नहीं करना जिससे यथार्थता पर पर्दा . ...
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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