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________________ mmmmmmm .५२५ एकादश अध्याय को ही छोड़ देता है, उसके मन में भाव शुद्धि का जागना कठिन हैं। क्योंकि उसके साथ उसका व्यावहारिक संपर्क नहीं रहने से आत्मिक संपर्क जुड़ सकना अत्यधिक कठिन है। इसलिए सामायिक की साधना के लिए द्रव्य और भाव दोनों का होना जरूरी है। . . .. . .. , . ... सामायिक को साधना को शुद्ध रखने के लिए चार प्रकार की शुद्धि बताई गई है- १-द्रव्य शुद्धि, २-क्षेत्र शुद्धि, ३-काल शुद्धि और ४-भाव शुद्धि । सामायिक में रखे जाने वाले उपकरण- रजोहरण, प्रमार्जनिका, आसन, चादर, मुखवस्त्रिका, माला आदि शुद्धि का अर्थ है कि ये उपकरण सादे, सात्त्विक एवं अल्प मूल्य वाले होने चाहिए। जहां तक हो सके आसन ऊन या खादी का बना हो तथा चादर, धोती . एवं मुखवस्त्रिका शुद्ध खादी की हो । क्षेत्र शुद्धि का अर्थ है-सामायिक करने का स्थान शान्त और एकांत जगह में होने चाहिए । शहर के हो-हल्ले,चों-चों:चोंचा होनेपर चिन्तन-मनन में मन नहीं लग सकता। ..अतः सामायिक भवन. एक त में होना चाहिए तथा सादा एवं सात्त्विक . ढंग से बना हुआ होना चाहिए । सामायिक के लिए विकारोत्पादक चित्रकारी एवं विलासी सामग्री से युक्त स्थान नहीं होना चाहिए। काल शुद्धि से यह तात्पर्य है कि सामायिक ऐसे समय में की जाए जिस समय न तो हो-हल्ला होता हो और न व्यक्ति पर किसी तरह का .... उत्तरदायित्व हो। इसलिए. सामायिक की साधना के लिए प्रातःकाल . .. का समय बहुत ही सुन्दर बताया गया है । एक महान विचारक ने कहा - . .. 'श्रावक जी उठे प्रभात चार घड़ी ले पिछली रात, ... मन में सुमरे श्री नवकार, जिससे उतरे भवजल पार।": : - साधना की दृष्टि से यह समय बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है। इस समय
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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